Friday, August 5, 2011
ब्रह्म सर्वत्र वर्तते...................आकाश झांकती,शीश स्पर्शी
Thursday, August 4, 2011
maa bharti
ख्वाब में अद्भुत अजूबी एक दिवार देखी
खुदे शब्दों की तमाम इबारत देखी
कहीं नज़म कहीं ग़ज़ल कहीं शेर छपे थे
हास्य औ व्यंग की अजब गजब तस्वीर देखी
सुप्रभात की कहीं सुन्दर शब्दावलियाँ
पूजा अर्चना श्लोकों से सजी हुई कई गलियां
ज्योतिष औ सद्विचारों का कहीं बोलबाला था
लोगों के विचारों पर, विचारों की टिप्पड़ियाँ
कहीं कहीं तो मंच सजा था
बिना निमंत्रण के ही अच्छा खासा रंग जमा था
अनदेखे अनजाने थे फिर भी पहचाने पहचाने थे
कभी वाह वाह, कभी चुटकी,तो कभी हसीं ठठ्ठा था
राजनीति भी उसमे पीछे न थी
ये राजा का वचन,तो कहीं मनमोहन की चुप्पी की चर्चा थी
कांग्रेस का बखान करते हरीश तो बी जे पी के सुरेश थेजो भी है दिवार बहुत थी खुबसूरत सुन्दर
अकेलेपन को बांह पसार अपनाता मित्रमंडल
छुपी प्रतिभा निखारता सवांरता
कल रात देखा अजीब-ओ-गरीब मंज़र
Tuesday, August 2, 2011
prabhat
रजनी की कालिमा धुलकर किनारे हट गई
प्रात का आलोक नव रश्मि ले कर सज गई
तरु पादपों को रंग कर हरे सुनहरे रंग में
झील नदियों जल प्रपातों को रुपहले रंग गई
स्वर्णिम दमकती सूर्य के चहुँ ओर कटीली पीतप्रभा
गुनगुनी हो रजत कुंदन के सदृश रेती धरा
पीली रवी की ज्योति से झिलमिल लहर हठ्खेलियाँ
अनंत जलधि दूरतक हजारों कोटि लघु मत्स्य सा
मधुमिश्रित नूपुर की झनक से संलिप्त सी मैं हो गई
नयन उठे जिस ओर धरा आलोकित सी हो गई
बच सका न कोई रूपसी वसुधा के यौवन से
डूबकर मद में उसके,खुद उन्मादी मै हो गई
द्वारा-आदर्शिनी श्रीवास्तव
11 july 2011 meerut
लेखनी की पीड़ा
लिखने को कलम उठाई
जब सच की सियाही में,
वो भी परेशान हो आग उगलने लगी,
यूँ तो झूठ से सहारा मिला
सच लिखने में बहुत,
बात बदलते गए
सच्चाई छपती गई,
एक के बाद एक मामले सामने आते गए,
शर्म से मुंह छिपा अब
लेखनी भी दुबकने लगी,
वक्त की मार ने कहाँ ला दिया मुझे,
सोचने लगी,
कभी रुकने,कभी चलने
पथभ्रष्ट होने से डरने लगी,
किसने समझl मुझ निर्जीव के मर्म को,
शब्दों में बिखरते आँखों के दर्द को,
वो श्रृंगार, प्रकृति,उत्साह,भक्ति से
मै क्यूँ भटक गई,
स्वयं राह दिखाने वाली मै
लोगों से मिन्नतें करने लगी,
मुझे चाहिए फिर वही
पुराना इतिहास,
भक्तिमय साहित्य,
प्रकृति और श्रृंगार,
राम की गाथा,कृष्ण का सन्देश,
क़ुरान शरीफ का पारा,
ग्रन्थ साहिब का उपदेश,
पुरानों की सी सूक्तियां,
वेदों का सत्संग,
बाइबिल की कथाये,
उपनिषदों का प्रसंग,
by--adarshini srivastava
8 july 2011
baarish
रिमझिम बरसात का पानी उनको मुबारक हो
प्रेयसी के रंग मे रंगना उनको मुबारक हो
हाथ फैलाके नाचना बरसात के पानी में
इमारतों में भीग कर जाना उनको मुबारक हो
कहाँ और क्या बनायें अपना ठिकाना हम
पाँव भी टीकाएँ किस जमीं पे हम
दुखती और भी चप्पल बिना फटती हुई बिवाई
टूटी मड़ैया में जब घुसता है ये बरसात का पानी
नदी नाले पोखर जहाँ उफान मारते हो
उन्हें कब भला भाता है ये बरसात का पानी
आश्वासन की उम्मीद थामे महीनों गुज़र गए
हाँ देखो,लौट कर आया है फिर ये बरसात का पानी
by adarshini srivastava
30 june 2011 meerut
ईश वंदना...........वटसावित्री व्रत के उपलक्ष्य में
हे विघ्नविनाशक ईश मेरे, मुझको एक चक्षु नवल दे दो,
सर्वप्रथम आचमन हो तेरा, निर्विघ्न हो कार्य ये वर दे दो,
हे मात शारदा नमन तुम्हे, करूँ अमिट मै भक्ति ये वर दे दो,
स्वर झंकृत हो मेरे मन का, शब्द मचल पड़े ये वर दे दो
माँ लक्ष्मी रूप अनूप तेरा, वैभव हो अपार सद्बुद्धि दे दो,
प्रणिपात करूँ मै चरण तेरे, मिले ज्ञान और मन निश्छल दे दो,
हे रूद्र,ब्रह्म, विष्णु मेरे, उत्साहपूरित तन मन दे दो,
हों सुर्यप्रभा सी समर्पित मै, इस देश पे ये निश्चय दे दो,
हे सृष्टि रचयिता ब्रह्माणी प्रिये, हे पद्म गदाधर लक्ष्मी प्रिये
हे चंद्रमौली तुम गौरी प्रिये,हे धनुर्धर राम जानकी प्रिये,
हे सरस्वती रूप तो कवि की प्रिये,हे अम्बे माँ तू भक्त प्रिये
हे मुरलीधर तुम ईष्ट मेरे, करू शीश नवाकर प्रणाम प्रिये
हे विघ्नविनाशक ...........................
सर्वप्रथम आचमन ...................................I
by-----------adarshini srivastava (adee)
2 june 2o11 meerut
प्यार की कश्ती
प्यार की कश्ती
खुद को लुटाकर तुमपर तुमको है मैंने पाया,
प्यार की कश्ती पर, हम दोनों ही चढ़ चुके है
मान जाओ बात मेरी जाने की जिद भी छोडो,
मोहब्बत की हद से देखो हम तुम गुजार चुके है,
प्यार के नर्म ज़ज्बात अब भी बने हुए है,
दम तोड़े साथ मिलकर, जब मिलकर मिट चुके है,