कितना खाली खाली मन है करने की कुछ चाह नहीं
लेकिन यदि करना ही चाहो करने की कोई थाह नहीं
घोर घना जंगल हो फिर भी पगडण्डी मिल ही जाती है
व्यवधानों के बीच में चलकर एक राह मिल ही जाती है
अभी जवानी के कुछ पल हैं जी लो अर्थ व्यर्थ कुछ करके
कल होगा एकाकी मन जब रोना होगा शीश पकड़ के
सुख की नींव आज पड़ती है अब न सोवो अब तो जागो
मैला मन अब तो धूल डालो बुकर,न लो कुछ सपने निर्मल से
अहंकार को रख दो कोने, हम सब एक सामान बौने हैं
मेरे दृग में तुम बौने हो तेरे दृग में हम बौने हैं
मैं मुखिया हूँ तुम बस अनुचर, ये रिश्ता मेरा वो तेरा
बरसों बरस साथ बीते जब कहाँ रहा अब तेरा मेरा
सुख का मुख स्याही से धुलकर, कर डाले क्यों उसको मैला
सबका सुख दुःख अपना समझें तभी दिखे उजियारा फैला
एक नदी के दो तट जैसे बीच में बहता निर्मल जल है
कभी-कभी ही बढ़कर लहरें ये तट छू लें वो तट छू लें
पर ऐसे घनघोर अँधेरे से उजियार कहाँ जीतेगा
मौन उधर सदियाँ बितेंगीं इधर मौन एक युग बीतेगा
हँसी ठिठोली पड़ी अजानी भय से शब्द मूक हो ताकें
प्यारी रैना का श्यामल मुख बोले हम कैसे निशि काटें
यंत्रचलित सी कर्तव्यों की एक कहानी बढ़ती जाती
बड़वानल से झुलसी फिर भी एक नदी बस बहती जाती
लेकिन यदि करना ही चाहो करने की कोई थाह नहीं
घोर घना जंगल हो फिर भी पगडण्डी मिल ही जाती है
व्यवधानों के बीच में चलकर एक राह मिल ही जाती है
अभी जवानी के कुछ पल हैं जी लो अर्थ व्यर्थ कुछ करके
कल होगा एकाकी मन जब रोना होगा शीश पकड़ के
सुख की नींव आज पड़ती है अब न सोवो अब तो जागो
मैला मन अब तो धूल डालो बुकर,न लो कुछ सपने निर्मल से
अहंकार को रख दो कोने, हम सब एक सामान बौने हैं
मेरे दृग में तुम बौने हो तेरे दृग में हम बौने हैं
मैं मुखिया हूँ तुम बस अनुचर, ये रिश्ता मेरा वो तेरा
बरसों बरस साथ बीते जब कहाँ रहा अब तेरा मेरा
सुख का मुख स्याही से धुलकर, कर डाले क्यों उसको मैला
सबका सुख दुःख अपना समझें तभी दिखे उजियारा फैला
एक नदी के दो तट जैसे बीच में बहता निर्मल जल है
कभी-कभी ही बढ़कर लहरें ये तट छू लें वो तट छू लें
पर ऐसे घनघोर अँधेरे से उजियार कहाँ जीतेगा
मौन उधर सदियाँ बितेंगीं इधर मौन एक युग बीतेगा
हँसी ठिठोली पड़ी अजानी भय से शब्द मूक हो ताकें
प्यारी रैना का श्यामल मुख बोले हम कैसे निशि काटें
यंत्रचलित सी कर्तव्यों की एक कहानी बढ़ती जाती
बड़वानल से झुलसी फिर भी एक नदी बस बहती जाती