Friday, October 14, 2011

......व्यक्तिगत ...........,

कार्तिक माह का आगमन,
शीतलता का सतसंग,
ललसित हो 'दर्शी'बंधी,
मनोहर रूप बंधन,
राजीव लोचन कामिनी,
रंगी रंग मतंग,
रजनी शरद का पूर्णिमा,
लहरों में कंगन,
मणि सी अवनी की ज्योत्सना,
बनी दिवाली पंक्ति,
रागिनी राग अलापती,
लख वन-उपवन-नंदन,
श्रद्धा से नयनी ताक रही,
करवा चौथ चन्दन,
अमीरस में वीरांगना,
तज चली अनी अनन्त,
माँ सिद्धेश्वरी औ श्रीकृष्ण को नमन करे,
'आदर्शिनी' अग्रजों संग,
दृग से अश्रु पोछती,
उठी कर स्मृतियाँ भंग,

पिता जी =श्रीकृष्ण
मम्मी=सिद्धेश्वरी
भाई भाभी=राजीव-कामिनी,अवनी-मणि
बहने=रजनी,रागिनी,नयनी,वीरांगना,आदर्शिनी

सभी को बहुत बहुत याद करते हुए

.........उठो शुभे ............

भोर हुई अब जाग मोहिनी रेन गई उठ दिवा जगा दे
कम्पित कर दे पलक भ्रमर को मुख से उलझी लट सरका दे

स्वर्ण-कलश से छलका मधुजल
निखिल दिशाओं को नहला दे
देव प्रतीक्षित भी हैं तेरे
मृदुल भक्तिमय गीत सुना दे
झिन्झारियों से पात-पात के
झाँक रहा आलोक नया है
वन उपवन ठहरा-ठहरा है खग-जन में हिल्लोर मचा दे

कलिकाएँ अधखिली रुकीं हैं
तरुओं पर कलरव है ठहरा
फूलों पर न कूजन रंजन
पंखुड़ियों में बंद है भँवरा
पग धरने की आहात सुन
सबका चित रंजक हो जाता
चहुँदिशि चाहत में हैं तेरी उठ प्राची को ध्वजा थमा दे

भोर वर्तुली हुई धरा अब
लो हो गई आज की होली
प्रस्थित हुई निशा की डोली
गूँजी खग की मीठी बोली
अनुस्वार से सज्जित माथा
श्रीमुख ने आलस्य है त्यागा
बहुरंगी हो गई दिशायें प्रात सुन्दरी शंख बजा दे