दिन-दिन जीवन सा लम्ब हुआ
कठपुतली सी इठलाई गई
डोरी में अंतरद्वंद्व हुआ
ऊँगली कि थिरकन पर थिरकी
ऊँगली ठिठकी काठी ठिठकी
समझा ना कोई उर कि पीड़ा
जल-जल कर कैसा रंग हुआ
सबने समझा मै काठ रची
लोगो का तो आनंद हुआ
मेरे कोरों से नीर बहे
मन उमड़-उमड़ के छंद हुआ
इंद्र धनुषी जो कुछ भी था
शनैः-शनैः वो धवल हुआ
डाली का महका सुमन-सुमन
मुरझा मुरझा बदरंग हुआ