Saturday, June 4, 2016

गीत .... तस्वीर बनाने बैठूँ

तस्वीर बनाने बैठूँ जब लेकर सुधियाँ तेरी
खुद ही चलकर आ जाती कूची संग रंग कटोरी

हरपल हरसू तुम दिखते हो
मुख पर हँसी बिखेरे
मैं हतप्रभ हो ताकूँ तुमको
लगते बहुत चितेरे
धीरे-धीरे इन क़दमों से
आया कौन अरे-रे
ये कैसे आ बैठे घर में
सोचूँ रात अँधेरे
ये क्या किया ढरका दिया मेरे आँचल पर रोरी

मन में उठी जल-तरंग में
उछले सौ-सौ मोती
इन मोती में नेह लुटाती
छवि तेरी ही होती
भूल गई लो चित्र बनाना
मन-का मनका पोती
ह्रदय-पटल पर अभिलाषा के
सुन्दर सपन सँजोती
लो पट्टिका तो रह गई तुम बिन कोरी की कोरी
......आदर्शिनी श्रीवास्तव .....