Tuesday, October 11, 2016

दशहरा ख़ास

हाँ ये सच है कि आज के समय में रावण का पुतला फूँकना एक नाटक ही है क्योंकि रावण अब गली-गली चौराहे चौराहे घूम रहे हैं l लेकिन कुछ लोग दशहरे में रावण का महिमा मण्डन भी कर रहे हैं और कुछ आगामी दिनों में करेंगे l जैसा प्रति वर्ष होता है  l माना रावण संस्कृत और वेदों का ज्ञाता था शिव जी का परम भक्त था l कामधेनु,अर्क प्रकाश और शिव संहिता जैसी कई पुस्तकों का रचयिता भी था  किन्तु अपनी शक्ति पर घमंड करने वालेऔर चरित्रहीन व्यक्ति का ऐसा अंत होना था जो हुआ l वर्षों तक समाज थू थू कर रहा है l.......... इसीलिए कहा गया है धन आया गया तो कोई बात नहीं लेकिन चरित्र गया तो सब कुछ गया l .........जब पाप का घड़ा भरता है तो उदर का अमृत भी काम नहीं आता l

राज्य विस्तार की हवस में धरती स्वर्ग पाताल एक करने वाले रावण के लिए मार्ग में आने वाली स्त्रियाँउसकी युद्ध की थकन और कामना को शान्त करने का साधन मात्र थीं l राज्य विजय कर लौटने पर मार्ग के अनेकानेक नरेशों, ऋषियों, देवताओं, दानवों की कन्याओं का अपहरण कर लेता और वो विलाप करतीं रह जातीं युद्ध में कोई अपना बेटा खोता कोई पति कोई भाई कोई अपना सखा लेकिन रावण को इससे कोई मतलब न था l वो अपने बहनोई का हत्यारा भी था l जिस गलती को उसने स्वीकार किया था l ...... और तो और अपने बड़े भाई कुबेर के पुत्र नलकूबर की प्रेयसी रम्भा को उसकी इच्छा के विरुद्ध अनुचित संपर्क किया जो नलकूबर से मिलने जा रही थी उसकी ये स्थिति देख नलकूबर ने रावण को शाप दिया l...... रावण के डर से लुकती छिपती पितामह ब्रह्मा के भवन की ओर जाती हुई पुन्जिक्स्थला के  साथ दुराचार किया जिससे ब्रह्मा जी द्वारा रावण शापित हुआ l ........ महापार्श्व द्वारा सीता के साथ जबरदस्ती करने के लिए उकसाने पर रावण ने स्वयं ये स्वीकार किया की वो शाप ग्रस्त है और ऐसा करने पर उसका मस्तक खंड-खंड हो जायेगा l ...... रावण ने ब्रह्मर्षि कन्या वेदवती को भी तिरस्कृत किया l वेदवती ने रावण द्वारा स्पर्श किये गए बालों तोड़ कर रावण को शाप दिया और स्वयं अग्नि में प्रवेश कर गईं l इसी वेदवती का दूसरे जन्म में माता सीता के रूप में पृथ्वी पर अवतरण हुआ l

यही नहीं रावण डींग मारने वाला औरअसत्यवादी भी था l उसने भरी सभा में कहा की सीता ने एक वर्ष का समय माँगा है और कहा है यदि एक वर्ष तक दशरथ नंदन नहीं आये तो मैं तुम्हे स्वीकार लूँगी l जबकि बाल्मीकि रामायण के सुन्दर कांड के २२वें सर्ग में लिखा है की रावण ने सीता जी को दो माह की अवधि दी थी जिसपर सीता जी ने उसे बहुत फटकारा था और वो दुष्कर राक्षसियों के पास उन्हें छोड़ अपना सा मुँह लेकर चला गया l यहाँ तक कि सीता जी ने लंका का अन्न तक ग्रहण नहीं किया l इंद्र जी के अनुरोध करने पर उनकी दी हुई अमृत खीर ग्रहण की और उतने दिन क्षुधा मुक्त रहीं l

Friday, October 7, 2016

मौसम और प्रकृति ... बियाहू

                                     
पाहुन आज हुआ मौसम 
वसुधा मन को भाई है
धड़कने ताल देती हैं बँसुरिया गुनगुनाई है

विहँस उट्ठी धरा पर 
मखमली पराग का अंचल
भ्रमर के मन में ललकन 
तितलियों के पंख हैं चंचल
प्रकृति की अधमुँदी पलकों में मदिरा छलछलाई है

बंदनवार घन के झूलते 
अम्बर दुअरिया पर
सितारे जड़ रहे कुंदन 
रूपसी की चुनरिया पर
गगन में आतिशें छूटी दिशाएँ झिलमिलाई हैं 

मंत्रित जल फुहारों की 
डोली नभ से आई है
भरी जब माँग जुगनू ने 
पुलक उर ने मचाई है 
मुख को ढाँप करतल से दुल्हनिया मुस्कराई है 

अतिशे =आकाश के प्रकाश तत्व 
भ्रमर = दूल्हा ( मौसम )