Sunday, May 22, 2011

दिल के कोने में भी प्यार का समंदर रखती हूँ

दिल के हर कोने में समन्दरसा प्यार रखती हूँ,
मिल लूँ एक बार जिससे दिल में उतर जाने का हुनर रखती हूँ,

यूँ ही नहीं लुटाया है खुद को मैंने तुम पर,
सांस की हर तर्ज़ पे टहलने का हुनर रखती हूँ,

तेरी बेरुखी से अपनी बेबसी भी है क़ुबूल मुझे,
मोहब्बत-ए-तासीर से तुझे तोड़ने का हुनर रखती हूँ,

आज ढा लो सितम मुझपे तुम चाहे जितना,
तेरी हर चोट पर मर मिटने का हुनर रखती हूँ,

फिर न कहना कि शबभर बेचैनी से करवट बदली,
बाद मौत भी सुकूं छीनने का हुनर रखती हूँ,