darpi megh
कल वह दर्पी विनाशकारी बयार सा
टीन पर गिरते बड़े छोटे आमो की टंकार
किर-किर की ध्वनि करते पत्ते
कभी शांत तो कभी शोर मचाती पवन
विद्युत् चमकाता
वैशाख से तपते पोखर खेतो को तरसाता
होना भर सूचित करता निकल गया
pranay nivedan
किन्तु आज रात व्योम का घमंड तो आसमां पर है
मौका है वसुधा पर अपने तेज को दर्शाने का
उसी के प्रभाव से तो वसुधा संग
सहोदर हरीतिमा और सागर हटखेलियाँ करते है
किन्तु अब व्योम को घमंड कहाँ?
वसुधा तक पहुँचते-पहुँचते व्योम का दर्प
गल-गल वर्षा जल से वसुधा का नव सिंगार करने लगा
तेज समीर से मानो वसुधा भी कुंदन जडित हरित आँचल लहरा
व्योम को और उन्मत्त कर देना चाहती हो
दामिनी ने सम्पूर्ण वसु पर चन्दन का लेप फेर दिया
फुहारें पुष्प मिश्रित हो इत्र का छिडकाव करने लगीं
तिनके, पंखुडियां,अर्धविकसित फलों के अक्षतीए स्पर्श से
वह कोमलांगी सध्य: स्नाता नई नवेली धुली लाजवंती सी
सिमट सकुचा अपने ही निवेदन पर लजा गई
पर भीनी वर्षा की एक एक बूंद की तब तक पीती रही
जब तक गुरुत्व उसे आत्मसात करता रहा
अतिरिक्त जल से पोखर जलमग्न कर दिया ताकि
सुबह सकारे वसुधा के अंक से खग मृग
जलक्रीडा कर पिपासा शांत कर सकें
अर्पित फल रुपी अक्षत को बच्चे नन्हे-नन्हे
स्निग्ध कोमल पैरों से वसुधा की गात पर चढ़ चढ़ समेट सकें
और मुदित मन वसुधा नत नयन हलकी मुस्कान से उनमे खो जाए
द्वारा------------ आदर्शिनी श्रीवास्तव