Sunday, January 29, 2012

बसंत विरह गीत

देखे तुमको सदियाँ बीतीं
पाती भी कोई न आई
नयनो से नयन न मिल पाए
अधरों कि बातें पथराईं

मै बैठी हूँ आहट तकती
प्रतिदिन सोलह सिंगार किया
तेरी सुगन्ध जो लाती है
उस पूर्व का सत्कार किया
तुम साँस-साँस में महके हो जब लि मौसम ने अंगड़ाई
नयनो से नयन न मिल पाए अधरों कि बातें पथराई

कोयक बागों में गाती है
तितली फूलों पर आती है
भौंरे की गुनगुन सुन कर के
कलियाँ खुद ही शरमाती है
तेरे आने की आहट से नाचे है घर की अँगनाई
नयनों से नयन न मिल पाए अधरों कि बातें पथराई

बदरी इठलाती आती है
फिर बादल की हो जाती है
आपने दिल की रस गागर को
बूंदों-बूंदों बरसाती है
फिर एक नदी मेरे भीतर जाने कैसी है उफनाई
नयनों से नयन न मिल पाए अधरों कि बातें पथराई

वापस आ जाओ परदेसी
पुरवाई तुम्हें बुलाती है
मेरे मन की जो खिली कली
हर शाम ढले मुरझाती है
आकार जीवन मधुमय कर दो बज उठे प्यार की शहनाई
नयनों से नयन न मिल पाए अधरों कि बातें पथराई
तुमको देखे सदिया बीती ..........