Wednesday, April 22, 2015

कविता ....आज की बदरी पर बस यूँ ही

आज की बदरी पर बस यूँ ही ............
आज फिर
धुंधला गया है
आसमां
धूप का निर्झर
भी सूना हो गया
आज फिर
पंछी लगे हैं
कूकने
पौध-पादप देखते
पर मौन हैं
जो अचानक
बूँद उन पर आ पड़ी
अचकचाकर
नैन पाती
हिल गई
चंचला कोकिल है
शुक से पूछती
धरा और नभ का
क्या नाता हो गया ?
.......आदर्शिनी श्रीवास्तव ......