Wednesday, November 9, 2011

हृदय अगर यूँ मोम न होता

हृदय अगर यूँ मोम न होता,

हृदय अगर प्रस्तर का होता,
तो कोई आघात न होता,
अहर्निश के मानस-मंथन से,
मन यूँ सिसक सिसक न रोता, हृदय यदि कसकभरा न होता,
हृदय अगर यूँ मोम न होता,



धक-धक कि हर गूँज से आतुर,
प्रतीक्षित आहट आभास न होता,
श्वास-श्वास उठने-गिरने से,
मिलन-भय का संकोच न होता, हृदय यदि कवि का न होता,
हृदय अगर यूँ मोम न होता,

आता-जाता जीवन में कोई,
गहरा मगर लगाव न होता,
चित्त-वेदना पूर्ण भाव का,
दृग द्वार से पार न होता , हृदय पट पर यदि भाव न होता,
हृदय अगर यूँ मोम न होता,


औरों सा ही दे प्रत्युत्तर ,
मन पर कोई क्लेश न होता,
रूप बिम्ब अपने साजन का ,
निशि-वासर प्रत्यक्ष न होता,हृदय यदि दर्पण न होता,
हृदय अगर यूँ मोम न होता,