Tuesday, November 29, 2011

..खामोश हैं क्यूँ दिल कि गिरह कुछ तो खोलिए,.........

खामोश हैं क्यूँ दिल कि गिरह कुछ तो खोलिए,
इस बेरूखी कि वजह बताइए हुज़ूर,
नज़र में कोई और है तो वो भी बोलिए,
खामोश हैं क्यूँ दिल कि गिरह कुछ तो खोलिए,

किसी का हाथ था निभाना भी है दस्तूर,
अरसे बंद क्यूँ है जुबां ये तो बोलिए,
खामोश हैं क्यूँ दिल कि गिरह कुछ तो खोलिए,

मशरूफ हैं कहीं या है मेरा ही कुसूर,
करना अगर किनारा है तो ये भी बोलिए,
खामोश हैं क्यूँ दिल कि गिरह कुछ तो खोलिए,

किसी कि मोहब्बत ने क्या ला दिया गुरूर
इस ओर गौर कीजिये फिर दिल से तोलिये,
खामोश हैं क्यूँ दिल कि गिरह कुछ तो खोलिए,

समझ गई कि 'आदर्शिनी' कि फ़िक्र है फ़िज़ूल,
आज़मा अगर रहे हैं तो आज़मा के बोलिए,
खामोश हैं क्यूँ दिल कि गिरह कुछ तो खोलिए,