सीधी,सम्भली,सतर्क चाल थी पर कहाँ कमी रही
बहुत कम को ही मिलती है जो पिछली थी जिंदगी
सम्पन्नता अपार है पर रीती है जिंदगी
अपनों की भीड़ में भी क्यूँ है तन्हाँ सी जिंदगी
लम्बी उमर बहुत है पर है छोटी सी जिंदगी
रफ़्तार से जो चली थी है अब थमी सी जिंदगी
लोगो ने हौसला दिया, कुछ पाया भी हौसला
कैसे बताऊँ की गोद में ही सोई थी जिंदगी
कम दिया, ज्यादा दिया शिकवा नहीं किया
विधाता की बेरुखी पर है ठगी सी जिंदगी
ज़ख्म दिया है तुने तो सब्र भी तो दे
उबर सके इस दर्द से तो कुछ दुआ है जिंदगी
by-----adarshini srivastava