Thursday, June 2, 2016


गीत
--------
क्या हुआ तटबंध क्यों फिर आज बौने हो गए
पीर तो उसकी थी लेकिन नैन क्यों मेरे झरे

ये ह्रदय की वेदना है
या कोई संत्रास है
हर तरफ क्यों एक जैसी
छटपटाती प्यास है
आज कितनों के हज़ारों ज़ख़्म हो बैठे हरे

पत्थरों के बीच भी तो
छलछलाता नीर है
हो भले मरुथल वहाँ भी
बह रहा समीर है
एक सरवर ही उपेक्षित हैं सभी सरवर भरे

ज़िन्दगी के विष को जिसने
मधु समझकर पी लिया
इन विसंगति में हँसा जो
वो समझ लो जी लिया
शीत घन के साथ बिजली है समझ से भी परे

.......आदर्शिनी श्रीवास्तव ......

मुक्तक

     

हो दो हृदयों का मौन मिलन
तब कथ्य कहाँ सब अनिवर्चन
बस हो आँखों में शोर बहुत
निःशब्द मनोगत गठबंधन
.....आदर्शिनी श्रीवास्तव

गीत .... ओह बरगद छाँव वाला



ओह! बरगद छाँव वाला वृक्ष कैसे ढह गया

वट के हरियाले सघन से
ये धरा रीती हुई
याद ही है अब सुरक्षित
नेह को जीती हुई
आत्मबल का भाव देकर हमपे कर अनुग्रह गया

प्राणवायु के बिना हैं
पौध सकते में खड़े
सहमे-सहमे देखते हैं
फाड़ नैना पाँवड़े
सब निशानी छोड़ पीछे वो समय सा बह गया

वो सुयश, रस का कलश
था प्रेम पल्लव से लदा
उसके वैभव पर निछावर
थी जगत की सम्पदा
ज्ञान, परउपकार वाला कोश का संग्रह गया

चाह थी विश्राम की पर
ये निरंतर का सफ़र
दैव-प्रेरित रास्तों का
डोलता उसपर चँवर
ये सफ़र रुकता नहीं स्वीकार वो आग्रह गया
......आदर्शिनी श्रीवास्तव .......( हरिद्वार में तातश्री के निधन पर )


वीडियो .....