Friday, September 30, 2016

तुझपे दिल कुर्बान

अबकी  केरल  भाषण में  मोदी  जी  का  सख्त  लहजा , तेवर  और  गंभीर  मुख मण्डल  ही  बता  रहा  था  कि उनके  मन  ने  जरुर  कुछ  कर  गुजरने  की  ठान ली  है  l 

" हमारे अट्ठारह जवानों की शहादत बेकार नहीं जायेगी "

"पकिस्तान की आवाम देखो ......... देखो पहले कौन अपने देश की गरीबी और बेरोज़गारी ख़त्म करता है l "

सच ही मोदी जी कहा था " भारत प्रगतिशील देश है वो सॉफ्टवेयर निर्यात करता है जबकि पकिस्तान सत्तर साल से वहीँ अटका  है और बस आतंकवाद निर्यात करता है l "

उन्होंने पकिस्तान की आवाम से पकिस्तान के अत्यचारी नेताओं के खिलाफ आवाज़ उठाने का आह्वान किया l ,,,,,,
पकिस्तान बार-बार हमारे अंदरूनी मामलों में टाँग अड़ाता आया है चाहे वो जे एन यू हो या कश्मीर l अब मोदी जी ने पकिस्तान की जनता तक अपनी बात पहुँचाई है l जब पानी सर से ऊपर चला जाए तो ......जैसे को तैसा .......शठ को शठता ही समझ में आती है l  

गुप्त मंत्रणा कर रक्षामंत्री मनोहर परिकर, अजीत डोवाल जी , ले.ज.रणवीर सिंह जी, मोदी जी और सभी सैनिकों को, ४२ आतंकवादियों और दो सैनिकों को मार गिराए जाने के सफल अभियान की बधाई l  

हमारे  जवानो का तीन  किमी तक  रेंगते  हुए जाना अपना पराक्रम दिखाना और जिस उद्देश्य  और  लक्ष्य के साथ वो गए थे उसे पूरा कर सुरक्षित वापस लौट आना l उनके हौसले ,जज्बे , हिम्मत की मिसाल है l २८ सितम्बर के अँधियारे का   फ़ायदा उठाते  हुए लगभग ४० आतंकवादियों और  २ सैनिकों को मार उनके हथियारों को बर्बाद कर चार घंटे में ही आपरेशन पूरा कर अपने स्थान पर वापस आजाना समस्त भारतवासियों के मन में आत्मविश्वास जगा गया l कल बेचारे पकिस्तान का दिन ही खराब था हाकी में भी भारत के हाथों पिटा और सरहद पर भी l भारत ने पूरे ठसके के साथ ये स्वीकार किया कि हाँ मैंने सीमा पार की  और आतंकी ठिकानों को नष्ट किया यही नहीं उसने पहले ही लगभग ३० देशों को ये सूचना दे दी थी और उन्होंने इस बात का कोई विरोध नहीं किया इससे ज़ाहिर होता है की उनका मौन समर्थन मोदी जी के निर्णय के साथ था क्योंकि सभी देश ,पाकिस्तान एक आतंकी अड्डों का देश है इसे स्वीकार करते हैं l क्योंकि वे भी या तो इस आग में जल रहे है या जलता हुआ देख रहे है और देशों को l सार्क सम्मलेन में भारत सहित चार देशों का बहिष्कार भी पकिस्तान को अलग थलग देश घोषित कर रहा है l भारत भी यही चाहता है की युद्ध न हो बस  पकिस्तान की ताकत इतनी क्षीण हो जाए की वो आतंकी गतिविधियों से तौबा कर ले क्योंकि युद्ध का दुष्प्रभाव पीढ़ियों तक  देशों को शारीरिक, मानसिक और आर्थिक तौर पर अपंग कर देता है l जब जब भारत का कोई नेता पकिस्तान गया या पाकिस्तान से कोई नेता दोस्ती करने के उद्देश्य से भारत आया तब-तब भारत में बम धमाका सुनने को मिला l इससे ये भी ज़ाहिर होता है कि पकिस्तान सरकार का वहाँ की सेना या आतंकियों पर कोई बस नहीं l आतंकी वहाँ छुट्टा घूमा भी करते है और सरकार कुछ नहीं कर पाती जबकि वो भी लाल मस्जिद और पेशावर जैसे दर्द झेल चुकी है l


पकिस्तान भला pok में २८ को हुए हमले से आहत हो भी क्यों ? वो असमर्थ बेबस खुद आतंक पैदा तो करता है दुसरे देशों के लिए ,किन्तु उससे ख़तम करने या सामना करने की ताकत नहीं रखता इसलिए व खुद जर्जर और मजबूर है वो अगर चाहता भी है कि  आतंक ख़त्म हो तो उसके पास इतनी ताकत ही नहीं है की वो उसे ख़त्म कर सके l अमेरिका द्वारा लादेन को मारा जाना और भारत द्वारा इतने आतंकियों का मारा जाना उसके लिए उपहार ही है l जो काम उसे करना चाहिए था उसे दुसरे देश कर रहे हैं l हम अपने घर के कीडेमकोडों के लिए कुछ न करे और बाहर के लोग आकर कीटनाशक से कीड़े नष्ट कर जाए तो हमें क्या दिक्कत  भला ? इसमें दूसरे देश का पैसा दूसरे देश की मेहनत  दूसरे देश की ही सैन्य क्षमता लगती है l तो आतंकवादी भी ये समझ ले की पकिस्तान भी उनका नहीं है जिसके दमपर वो कूदता फिर  रहा है जिसदिन कोई ढंग की सरकार पकिस्तान में आई वो सही साठ ढूँढ उसका खत्म कर देगी l

फिर भी नमुराद पकिस्तान ये मानने को तैयार नहीं की pok में ये हमला हुआ है क्यों माने भला तब तो उसे स्वीकारना होगा की पकिस्तान में आतंकवादी है या फिर ये स्वीकार करे की उसके ४० जवान मारे गए l वो अपने ही झूठ में फँस गया है एक तरफ कहता है हमला हुआ ही नहीं और ये विडियोस और फ़ोटोज़ भारत ने अपने ही देश में बनाई है जब की भारतीय जवानो के हेलमेट में कैमरे फिट थे जिसमे पकिस्तान को पुख्ता सुबूत  दिया जा सके क्योंकि वो बहुत पल्टउऊआ देश है l और दूसरी ओर वो इस घटना की निंदा भी करता है और दो सैनिकों का मरना स्वीकार भी करता है l ये कैसा दोहरापन है उसका l

अब सोचने का विषय ये है कि हमारे १८,१९ सैनिक शहीद हुए थे और हमने ४० आतंकवादी मारे हैं तो क्या इतने बदले से संतुष्ट हो जाना चाहिए ? क्या एक सैनिक की कीमत दो आतंकवादी है ? सैनिकों का परिवार होता है ,भावनाएं होती हैं , देशभक्ति का जज़्बा होने के कारण परोपकार का भाव होता है वो अच्छे घर के अच्छे संस्कारों में पले बढ़े होते हैं उनकी संताने अपने पिता पर गर्व करती हैं उनका नाम छिपाती नहीं  और घर ही क्या पूरा गाँव पूरा शहर पूरा देश उनपर गर्व करता है l एक सैनिक और आतंकवादी की क्या बराबरी ? आतंकवादी की तो लाश भी उसके घर वाले और पाकिस्तानी  सरकार लेने से मना कर देती है l कहीं से भी बच्चे चुराकर बचपन से उनमे घृणा का भाव भर उसे आतंकवादी बनाया जाता है l

सर्जिकल स्ट्राइक की घटना पर हमें मोदी जी के निर्णय और सैनिकों को बधाई देकर खुश होना चाहिए पर अभी और बहुत कुछ करना है  पाकिस्तानी सरकार की नीतियों को बदलने को विवश करना है क्योकि विवश करना ही उसके लिए ठीक शब्द है समझ में तो उसे आता नही l आतंकवादियों  को छेदते हुए उनकी आड़ में काम करने वाली सेना तक पहुँचना है l वहाँ की सेना से बैर इसलिए क्योंकि वो आतंकवादियों की आड़ में अपना काम करती है l वर्ना  किसी देश की सेना से हमारा कोई द्वेष नहीं सब खुश रहे अपनी सीमा में रहे l मैत्री भाव से रहें l  




Tuesday, September 13, 2016

लेख ---चन्दन चर्चित छवि तेरी .....क्या खूब हिंदी हो मेरी


हिंदी भारत की ही नहीं विश्व की सबसे अधिक समृद्ध शास्त्रीय और वैज्ञानिक भाषा है l जो भाषा की ध्वनियों को जैसे का तैसे रूप में प्रस्तुत करती है l देवनागरी लिपि अपेक्षा संसार की अधिकांश लिपियाँ अत्यधिक त्रुटिपूर्ण हैं l इसकी तरह संसार की कोई भी लिपि ध्वन्यात्मक और वैज्ञानिक नहीं है और इसको देश-विदेश के सभी विद्वानों ने एकमत हो मुक्त कंठ से स्वीकार किया है l स्वर और व्यंजन का बहुत स्पष्ट अलग-अलग विभाजन है l स्वरों में भी मूल स्वर पहले और संयुक्त स्वर बाद में बहुत स्पष्टता से आते हैं l इसका उच्चारण स्थान तालू, जिव्हा, कंठ आदि बहुत हिसाब से पूर्ण वैज्ञानिकता के साथ हैं l उच्चारण अंगों को ध्यान में रख कर बहुत साधना के साथ चिंतन मनन और विश्लेषण के इसका निर्माण हुआ है l
आज दुनियाँ के समस्त देशों में भारतीय रह रहे हैं l दुनियाँ के लगभग डेढ़ सौ देशों देशों में ढाई करोड़ भारतीय रह रहे हैं और चालीस देशों के ६०० विश्वविद्यालयों और विद्यालयों में हिंदी पढाई जा रही है l विदेशों में हिंदी में पत्र-पत्रिकाएँ छप रही हैं l अमेरिका की विश्वा और मारीशस की आर्यवीर और जागृति प्रसिद्द पत्रिकाएँ हैं l ये हर्ष का विषय है की भारत ही एक ऐसा देश है जिसकी पाँच भाषाएँ विश्व की सोलह प्रमुख भाषाओँ में शामिल हैं l

संयुक्तराष्ट्र संध में शामिल होने के भारत की केवल खड़ी बोली के हिसाब से सर्वे किया गया जिससे अभी उसका स्थान संयुक्तराष्ट्र संघ के लिए निर्धारी नहीं हो पाया l पर ये क्यों नहीं हो पाया ये विचारणीय प्रश्न है lअगर देवनागरी से उद्धृत बोलियों मराठी, राजस्थानी, नेपाली, पंजाबी जैसी तमाम बोलियों को मिला कर गणना की जाए तो हिंदी भाषा विश्व में प्रथम स्थान पर होगी l इससे संयुक्त राष्ट्र संघ में उसे शामिल हो जाना चाहिए l इसके अतिरिक्त जनसंख्या की दृष्टि से भारत दूसरे नंबर का देश है जिसकी आबादी लगभग १२५ करोड़ है जो दुनियाँ भर के अंग्रेजी भाषी से अधिक हैं l 

भारतीय आर्य भाषाओँ की सभी भाषाओँ का अपने क्षेत्र में विशेष स्थान हैं किन्तु हिंदी भाषा का एक विशिष्ठ और महत्वपूर्ण स्थान है l अवधि ब्रज बुन्देली डोंगरी कन्नड़ आदि अलग-अलग प्रदेशों में अपने स्थान के कारण प्रसिद्द हैं l इन बोलियों में खड़ीं बोली का अलग स्थान इसलिए है क्योंकि ये किसी विशेष स्थान से सम्बंधित नहीं है l शायद ये खरी से इसे खड़ी कहा जाने लगा है l खरी मतलब शुद्ध, प्राकृत, विशुद्ध l भारत में खड़ी बोली का क्षेत्र बहुत विस्तृत है पश्चिम उत्तर और पूरब में इसने अपनी शुद्धता के बल पर अपना स्थान बनाया है l वर्तमान समस्त साहित्य का मूलाधार खड़ी बोली है l अब इस खड़ी बोली में उर्दू फारसी का समवेश होने लगा है l यही खड़ी बोली भारत की राजभाषा, राष्ट्रभाषा और साहित्य  भाषा है l साहित्य में जो स्थान इसका है भारत की अन्य भाषाओँ का नहीं l  
     
इंटरनेट की दुनियाँ में हिंदी को नई उड़ान दी है l जहाँ इंटरनेट पर पहले अंग्रेजी का वर्चस्व था अब हिंदी का भी महत्वपूर्ण स्थान है l हिंदी में मेडिकल और इंजीनियरिग जैसी उच्च शिक्षायें भी हिंदी होने में होने लगीं हैं l सरकार प्रदेशीय हिंदी माध्यम के विद्यालयों में उसकी स्थिति सुधरने में प्रयासरत है l दुनियाँ की अधिक से अधिक भाषाओँ का ज्ञान और यथा समय अनुकरण करना बुद्धिजीवियों का गुण है उन सबके प्रति आदरभाव और ज्ञान के साथ ही हमें हिंदी को समर्पण भाव से अपना कर चलना है l अतः हिंदी की स्थिति किसी प्रकार से शोचनीय नहीं है l 

जहाँ तक वर्तमान साहित्य की बात है लेखन का स्तर गिरता ही जा रहा है हलाकि इंटरनेट पर कुछ विद्वान हिंदी की पुरानी गरिमा बनाये रखने के लिए परिश्रम के साथ प्रयासरत हैं पर उसका फायदा तो वही उठा पायेगा जो सीखना चाहेगा l आजकल लोग त्वरित प्रसिद्धि तो चाहते हैं पर अध्ययनशील नहीं हैं l ये सच है की साहित्य या काव्य ऐसा हो जो जन-ग्राह्य हो शब्दों का चयन बहुत समझदारी से और सुन्दरता से हो किन्तु ऐसा भी न हो कि वो इतना सरल हो जाये की उसका कुछ स्तर ही न रहे l हिंदी संस्कृत की तनया है और हिंदी, साहित्य सृजन में पूर्णतया अपनी माता का तिरस्कार कर दे ये भी उचित नहीं l हमारे लिए कोई चीज़ तभी तक कठिन होती है जब तक वो हमें उसका ज्ञान नहीं होता l हमारी हिंदी के सहस्त्रों शब्दों के महा शब्दकोश में हजारों शब्द काल कोठरी में पड़ी रूपसी की तरह बिना बाहर आये छटपटा छटपटा कर दम न तोड़ दे l लोचन, अक्षि, चक्षु, नैन, दृग जैसे सुन्दर शब्द हमने प्रयोग किये हैं इसीलिए वो सरल लगने लगे हैं l नाव का बोहित शब्द कितना खुबसूरत है पर उसका प्रयोग हम क्यों नहीं करते ? हिंदी के तमाम शब्द बहुत खूबसूरती के साथ शब्दकोश से बाहर लाना भी हमारा कर्तव्य है l एक-एक शब्द के दसियों दसियों पर्यायवाची हैं जिन्हें हम मात्राओं के हिसाब से प्रयोग कर सकते हैं l 
    
 अन्य भाषाओँ के ज्ञान और प्रयोग के साथ हम घर के बच्चों के समक्ष बोलचाल की भाषा हिंदी रखें तो पीढ़ी दर पीढ़ी हिंदी की सौगात हम अगली पीढ़ी को  अनायास ही भेंट करते रहेंगे इससे अन्य लोग भी सुनकर प्रेरित होंगे नई पीढ़ी में अपनी राष्ट्रभाषा के प्रति सम्मान बढेगा और हिंदी नित नई उचाईयों को हासिल करती रहेगी l

.....आदर्शिनी श्रीवास्तव ... मेरठ 

Thursday, September 8, 2016

कविता ----उस बिटिया की वो बिटिया दुनियाँ ही थी

उस बिटिया की वो बिटिया दुनियाँ ही थी
जिसके दुःख से
तड़प रहे थे कातर स्वर
स्तब्ध खड़े थे
दिग्दिगंत निशब्द वहाँ
कितना निष्ठुर है
 लीला करने वाला
उस मालिन को कुछ था
अपना होश कहाँ
उस बिटिया की वो बिटिया दुनियाँ ही थी
ज्वर से पीड़ित देंह
अशक्त ढीला-ढीला
मौन भी भय से
मौन खड़ा पीला-पीला
अवचेतन में जो भी शब्द
ठहरते मुख पर
दर्द में डूबे लावों से
गिरते थे सब पर
सब चुप थे पर कहते थे
वो कैसी होगी ?
उस बिटिया की वो बिटिया दुनियाँ ही थी
भीतर गाढ़ा रक्त हुआ
दुःख से तन का
क्रम साँसों का
काया में रह रह अटका
निश्छल बालापन था
नैनों में आता
छुप-छुप कर
खारे घट को था लुढ़कता
आवाक् खड़े थे
सब ढाढस देने वाले
उस बिटिया की वो बिटिया दुनियाँ ही थी

.......आदर्शिनी श्रीवास्तव..........












Wednesday, September 7, 2016

गीत -- मतवाले अहि को जो छेड़े कौन हुआ है दीवाना

नवजागृति का है संदेसा 
अवरोधों का बढ़ जाना 
मन के संकल्पों को किसने 
सुख के क्षण में पहचाना 

स्वप्न-नीड़ को छोड़ बटोही 
उड़ ले नील गगन में तू 
अब रच तू तारों का मण्डप
रह ले दीप-भवन में तू 
मणि रत्नों से भरा पड़ा है 
ह्रदय देश का तहख़ाना

हारे मन की रोक रागिनी 
उठ प्रस्तर से टकराने 
या उर्वर धरती को बंजर 
करके रख ले सिरहाने 
भीतर के हठ के स्रोतों को 
बह जाने दे मनमाना 

श्रीहीन इस मुखमण्डल को 
धो ले रवि की लाली से 
रीती के दे जो मन -वीथी 
कुछ मत चख उस प्याली से 
मतवाले अहि को जो छेड़े 
कौन हुआ है दीवाना 

...आदर्शिनी श्रीवास्तव ...