Thursday, December 29, 2011

क्यों सजना यूँ व्यथित हुए

एकटक देख रहीं थीं बूँदें,
नेत्र भी उनके सजल हुए
छलके नयन लगे मन हरने
दिल जाने क्यूँ दो विकल  हुए
अभी कहाँ खोला था मन को
कैसे उसका विश्वास बनूँ
पलकों पर अधरों को रख दूँ
या कोमल आलिंग कसूँ
क्या कर दूँ जो चक्षु न भीगे
कैसे  पीड़ा मन की हर लूँ
कोई कसक तो होगी मन में
क्यूँ सजना यूँ व्यथित हुए