Friday, September 16, 2011

बदरी



ये सच है तपन पहले जैसी नहीं
किन्तु बदरी है जो हटती भी नहीं
है ज्वार सा उठता सुनामी कभी
धीमी लहरों की ठंडी थपक है कभी
रह रह के हृदय ढांप लेती है वो
आ जाती है फिर जल्दी छंटती नहीं

गोरे गोरे मुख पर ओढ़े एक चुनरिया झीनी सी
तनिक छुपे फिर तनिक दिखाए जब उड़े चुनरिया झीनी सी
श्वेत मेघ से तन को ढांपे,श्याम मेघ से रूप छिपाए
नभ पर खूब सजे तू सजनी,कुछ बरसा बदरिया झीनी सी