हर छुअन, हर एहसासों में, सारे सपने सच्चे थे
प्रणय बंध में बंधने का सपना जब हमने देखा था
उसी क्षण झंझाओ तब आकर हमको घेरा था
तरंगित लहरों के तट पर हम शून्य निहारा करते थे
आश्वासन देते जब तुम थे, काँधे पर नीर ढुलकते थे
कंठ तेरा जब रुंध जाता, तब हम समझाने लगते थे l
समझौता कर नियति से जब समय विलग होने का था,
अब तक कसमे मिलने की थी, न मिलने का अब वादा था
हर साँसे बाधित थी उस पल, जिस पल हाथ छुडाया था
पग तो पीछे करने थे, पर अंतर्मन छुट न पाया था
खींच रहा था तुम्हे कोई, हमको भी खींचा जाता था
हाहाकार मचा था मन में, अश्रु अंतस न समाता था l
प्रणयित होकर मै अलग हुई, तुमने भी सेहरा बांधा था
हम दोनों की विवशता ने कुछ अपनों को भी रुलाया था
दिन बीते, सालो बीते, पर धूमिल नहीं है प्यार तेरा
विगत पल और लम्हों का ताजा सा है एहसास तेरा
अनिष्ठ (अन इच्छित) सरल साथी को
अध्येता बन ग्रहण किया मैंने
कोरे भाव सजा सकूँ ऐसा हर प्रयास किया मैंने
सर्वस्व न्योछवर कर मैंने पश्च भूल अग्र सजाया है
भावना कही दस्तक न दे उन यादो को दफनाया है
उधर समर्पित हो तुम प्रिय, मैंने संसार बसाया है
संयमित हो हम दोनों ने नए रिश्तो को अपनाया है l
पर आज अचानक क्यों तुमने अपनी छाया दिखला दी है
शांत पड़े इस सागर में हलचल सी आज मचा दी है
आज तुम्हे जब देखा तो निश्छल सी कुछ क्षण रही खडी
दृग चमके, आंसू छलके, धारा कपोल पर दुलक चली
क्या करू ? क्या करू मै है करू मै क्या
मै सिसक सिसक के फफक पड़ी
आवृत हुई उस छाया में पर पग को मै ठिठका के रही
रख मर्यादित जीवन के अर्जन को, गृह मान सम्मान बचा के रही l
द्वारा -- आदर्शिनी श्रीवास्तव