Monday, December 19, 2016

गंगा स्तुति


हे बुद्धिदा भागीरथी तुम ज्ञानदा तेजोमयी
निर्मल सरल सुरसरि सहज तुम प्राणदा आभामयी
किसमें भला सामर्थ्य थी जो वेग अविरल धारता
बस शम्भु शंकर ईश ही समर्थ थे गंगे अहो

गौरांगिनी गंगा पतित पावन कुमारी सुंदरी               
मैनावती-हिमगिरि सुता शोभावती तुम जलपरी
होता प्रखर मति वो मनुज जो नित्य जल सेवन करे
है आस्था विशवास तुम पर जाह्नवी गंगे अहो

सरिता सलिल कल-कल कलिल धुन गुंजरित करुणामयी
उतरी भयंकर वेग से अति शुभ्र हो शुचितामयी
देवर्षि गण वसु यक्ष नग अभिभूत से देखें तुम्हे
नभ से हुई मकरंद वर्षा अक्षरी गंगे अहो

उद्धारिणी हर मानवों की पाप से हो तारती
ढलती हुई गोमुख शिखर से केहरी हो सोहती
वर्षों भगीरथ ने तपस्या की तभी दर्शन हुआ  
धरती हुई तब अम्बुमय, भावान्जली गंगे अहो

हिमकर सरीखी स्वच्छ निर्मल श्वेत नीर तरंगिनी
औषधि तुम्हारे वारि में हे सुरधुनी हे मधुवनी
अतुलित तुम्हारी श्रेष्ठता है कुछ कहा ना जा सके  
शत-शत नमन आभार हो, हे सुर नदी गंगे अहो
... आदर्शिनी श्रीवास्तव ....




Friday, December 2, 2016

सूर्य स्तुति .....उनके २८ नामों के साथ

संसार में जितनी भी प्रकाशवान वस्तु अथवा पदार्थ हैं उसमे प्रकाश सूर्य से ही संभव है l पञ्च महाभूतों में अन्य चार महाभूत सूर्य के आश्रय के बिना संभव नहीं l

हो सूर्यतुम अर्यमानतुम त्वष्टातुम्ही सवितातुम्ही
तुम ही तपे हो स्वर्ण से हो अग्नि की गुरुता तुम्ही
तुम ही जगत की साधना निस दिन तुम्हारा गान है
इस विश्व का आलोक तुम रत्नों की तुममे खान है

हो भानुतुम कामदतुम्ही दिनमणि’ ‘दिवाकरहो तुम्ही
रविकर-निकरउद्भट तुम्ही दिवनाथ’ ‘गहवरहो तुम्ही
भूलोक का कण-कण सदा दिनमानका पूजन करे
गंधर्व ऋषि कंदर्प मुनि शरकांतका अर्चन करें

हो पुत्रवत्सल श्रेष्ठ बुद्धि सद्भाव धैर्य की खान हो
दो दृष्टि का उजियार हो ब्रह्माण्ड का अभिमान हो
अतिशय चमकते तेज से ही चक्र विष्णू का बना
है सत्य सात्विक तेज तप का आचरण तुमसे जना

आदित्यतुम कुंतीपतीअभिमान हो धुलते तुम्ही
मार्तण्ड’ ‘रवि’ ‘दिनकरतुम्ही आपत्तियाँ हरते तुम्ही
करता सुबह जो प्रार्थना पाता अमित वरदान है
संसार की हर वस्तु ज्योतिर्मय तुम्ही से, ज्ञान है

हो अर्कतुम विवस्वानतुम अधिपति’ ‘प्रभाकरहो तुम्ही
हो शीत का उपचार तुम विधु मखमली भी हो तुम्ही
हो अंशुपति’ ‘वह्निनाथतुम धातातुम्ही पूषातुम्ही
दिग्नाथ’ ‘पावकनाथहो तुम प्राणदा ऊषा तुम्ही

              आता प्रलय जब-जब धरा पर नीर किरणें सोखतीं
रचता नया संसार तब नव नव प्रजाती बोलती
हो भास्करकी प्रार्थना तन मन मनस अरु भाव से
तो तेज तुम सा त्याग तुम सा मान ध्यान प्रभाव से 



 ....adarshini srivastva ....


Saturday, November 26, 2016

हम जाने हम कौन

ख़बर आई है कि दाल में नमक कम होने के कारण उसे देंह मुक्त कर दिया गया और उद्धारक को इसमें कोई अफ़सोस नहीं l एक पुराने घर में तमाम मानव बच्चों के कंकाल ढेर लगा और फ्रीज़र में लोथड़े रख लोग मदोन्मत्त हो ज़श्न में डूबे हैं l कहीं कुछ नरों को तेज़ाब से गल-गल के टपकते मांस की महक बहुत सोंधी लग रही है l पूरा एक समूह किसी एक पर हावी हो अपना पुरुषत्व सबित करने को अमादा है l कुछ नरों ने जाल बिछाया है जिसमे एक आतिशबाजी से उछाले गए रंगीन पन्नों की तरह कुछ लोग हवा में लहरा लहरा जमीन पर आ रहे हैं l क्या इंद्रधनुषी छटा है l उन नरों में कुछ पुरुष भी यदा कदा दिख जाते है l पर नरों में बहुत उथल-पुथल है वो अच्चम्भित हैं कि मैंने तो सारे नरों को पुरुषत्व के चोले से अच्छी तरह रंग दिया था और असली पुरुष को उसी असीम सत्ता को अपने पास रखने को तैयार कर लिया था फिर ये कैसे बाहर आ गये ?

कभी-कभी लगता है नर को पुरुष नाम से संबोधित करना भी स्वयं नर की सोची-समझी साजिश है स्वयं को श्रेष्ठ साबित करने के लिए l जिससे वह देवत्व पद पर बड़ी आसानी से आसीन हो सके l उन्हें परमेश्वर कहा जा सके l जब एक परमेश्वर हो गया तो अन्य पदार्थ, जीव  स्वतः नगण्य, भक्त, साधारण, अति साधारण हो गए l फिर जैसा चाहो वैसा उपयोग करो, उपभोग करो , क्या चिंता ? हर नियम कानून, घर, परिवार, समाज, अधिकार में उसका स्थान ऊपर रहे l वैसे शुरू-शुरू में इतनी भीषण समस्या नहीं रही होगी बस यूँ ही मजाक मजाक में नाम रूपांतरण हो गया होगा l पर दिन बीतते ये साधारण बात न रह गई l इसमें से गरल टपका जो बूँद पर बूँद पड़ने से ऊँचा और ठोस होता गया और उस ठोस पदार्थ का नाम हो गया अहंकार l और नर उसे अपना मान सदैव साथ लिए लिए फिरने लगा l नर खद ही भूल गया कि मेरा नाम रूपांतरित है वास्तव में हम पुरुष नहीं नर हैं l जो पुरातन पुरुष से बिलकुल भिन्न है .....और अहंकार तत्व उसमे सर्वथा वर्जित है इसलिए वो पुरुष है l  

दूसरी ओर ---- परिवर्तन रूप क्रिया होना प्रकृति का स्वाभाव है l हाँ प्रकृति परिवर्तनशील है l वह नश्वर है वह स्वीकारती है l वह जब से अस्तित्व में आई पल-पल, हर क्षण बदल रही है l स्वीकार कर रही है l वो ऋतुओं में ढलती है l ओस की बूँद अभी दिखती है कुछ देर बाद नष्ट हो जाती है l वो कली अभी बंद थी अभी खिला फूल हो गई l हरियाली धरा बंजर हो जाती है l लहलहाती धरती भौगोलिक उथल-पुथल से रेगिस्थान में तब्दील जाती है l गाँव का गाँव जल प्रवाह में विलीन हो जाता है l वो कभी प्रियतम के लिए संजीवनी है तो कभी दावानल l कभी कोमल चन्दन का लेप तो कभी कैकटस l उसमे परिवर्तन होता है वो स्वीकारती है उसे नष्ट होना है वो स्वीकारती है इसलिए उसे अहंकार नहीं l उसने किसी और नाम का चोला नहीं ओढा उसने किसी और पुण्य नाम का लबादा नहीं ओढा l उसे अपनी शाश्वश्ता का अहंकार नहीं l अपने नश्वरता पर खेद भी नहीं l 

किन्तु नर अपनी शाश्वत सत्ता के लोभ में खुद को भूल बैठा है और शाश्वत नाम पुरुष का चोला ओढ़ रखा है l वह सोचना नहीं चाहता की वो, वो नहीं जो खुद को समझ रहा है l वो भी प्रकृति की तरह चित्रकार का मात्र एक संकल्प भर है जो कभी भी ढह सकता है l 

नहीं समझे मैं क्या कह रही हूँ ? ......

आओ मैं बताती हूँ पुरुष क्या है ? .... पुरुष वो चेतन सत्ता है जो सर्वथा अपरिवर्तनशील है......, नित्य है,...... अचल है,...... निर्विकार है......, वो कर्म रहित है......., एक रस है......., क्रिया करने की योग्यता उसी मे होती है  जिसमे परिवर्तन और विकार होता है...... पुरुष में परिवर्तन का स्वाभाव नहीं,..... जो अहंकार से मोहित नहीं होता वही तत्त्ववित् है....... वही तत्वदर्शी है ..... निरंकार है ......ओंकार है और .........वही पुरुष है l

......आदर्शिनी श्रीवास्तव ..... 

Tuesday, October 11, 2016

दशहरा ख़ास

हाँ ये सच है कि आज के समय में रावण का पुतला फूँकना एक नाटक ही है क्योंकि रावण अब गली-गली चौराहे चौराहे घूम रहे हैं l लेकिन कुछ लोग दशहरे में रावण का महिमा मण्डन भी कर रहे हैं और कुछ आगामी दिनों में करेंगे l जैसा प्रति वर्ष होता है  l माना रावण संस्कृत और वेदों का ज्ञाता था शिव जी का परम भक्त था l कामधेनु,अर्क प्रकाश और शिव संहिता जैसी कई पुस्तकों का रचयिता भी था  किन्तु अपनी शक्ति पर घमंड करने वालेऔर चरित्रहीन व्यक्ति का ऐसा अंत होना था जो हुआ l वर्षों तक समाज थू थू कर रहा है l.......... इसीलिए कहा गया है धन आया गया तो कोई बात नहीं लेकिन चरित्र गया तो सब कुछ गया l .........जब पाप का घड़ा भरता है तो उदर का अमृत भी काम नहीं आता l

राज्य विस्तार की हवस में धरती स्वर्ग पाताल एक करने वाले रावण के लिए मार्ग में आने वाली स्त्रियाँउसकी युद्ध की थकन और कामना को शान्त करने का साधन मात्र थीं l राज्य विजय कर लौटने पर मार्ग के अनेकानेक नरेशों, ऋषियों, देवताओं, दानवों की कन्याओं का अपहरण कर लेता और वो विलाप करतीं रह जातीं युद्ध में कोई अपना बेटा खोता कोई पति कोई भाई कोई अपना सखा लेकिन रावण को इससे कोई मतलब न था l वो अपने बहनोई का हत्यारा भी था l जिस गलती को उसने स्वीकार किया था l ...... और तो और अपने बड़े भाई कुबेर के पुत्र नलकूबर की प्रेयसी रम्भा को उसकी इच्छा के विरुद्ध अनुचित संपर्क किया जो नलकूबर से मिलने जा रही थी उसकी ये स्थिति देख नलकूबर ने रावण को शाप दिया l...... रावण के डर से लुकती छिपती पितामह ब्रह्मा के भवन की ओर जाती हुई पुन्जिक्स्थला के  साथ दुराचार किया जिससे ब्रह्मा जी द्वारा रावण शापित हुआ l ........ महापार्श्व द्वारा सीता के साथ जबरदस्ती करने के लिए उकसाने पर रावण ने स्वयं ये स्वीकार किया की वो शाप ग्रस्त है और ऐसा करने पर उसका मस्तक खंड-खंड हो जायेगा l ...... रावण ने ब्रह्मर्षि कन्या वेदवती को भी तिरस्कृत किया l वेदवती ने रावण द्वारा स्पर्श किये गए बालों तोड़ कर रावण को शाप दिया और स्वयं अग्नि में प्रवेश कर गईं l इसी वेदवती का दूसरे जन्म में माता सीता के रूप में पृथ्वी पर अवतरण हुआ l

यही नहीं रावण डींग मारने वाला औरअसत्यवादी भी था l उसने भरी सभा में कहा की सीता ने एक वर्ष का समय माँगा है और कहा है यदि एक वर्ष तक दशरथ नंदन नहीं आये तो मैं तुम्हे स्वीकार लूँगी l जबकि बाल्मीकि रामायण के सुन्दर कांड के २२वें सर्ग में लिखा है की रावण ने सीता जी को दो माह की अवधि दी थी जिसपर सीता जी ने उसे बहुत फटकारा था और वो दुष्कर राक्षसियों के पास उन्हें छोड़ अपना सा मुँह लेकर चला गया l यहाँ तक कि सीता जी ने लंका का अन्न तक ग्रहण नहीं किया l इंद्र जी के अनुरोध करने पर उनकी दी हुई अमृत खीर ग्रहण की और उतने दिन क्षुधा मुक्त रहीं l

Friday, October 7, 2016

मौसम और प्रकृति ... बियाहू

                                     
पाहुन आज हुआ मौसम 
वसुधा मन को भाई है
धड़कने ताल देती हैं बँसुरिया गुनगुनाई है

विहँस उट्ठी धरा पर 
मखमली पराग का अंचल
भ्रमर के मन में ललकन 
तितलियों के पंख हैं चंचल
प्रकृति की अधमुँदी पलकों में मदिरा छलछलाई है

बंदनवार घन के झूलते 
अम्बर दुअरिया पर
सितारे जड़ रहे कुंदन 
रूपसी की चुनरिया पर
गगन में आतिशें छूटी दिशाएँ झिलमिलाई हैं 

मंत्रित जल फुहारों की 
डोली नभ से आई है
भरी जब माँग जुगनू ने 
पुलक उर ने मचाई है 
मुख को ढाँप करतल से दुल्हनिया मुस्कराई है 

अतिशे =आकाश के प्रकाश तत्व 
भ्रमर = दूल्हा ( मौसम )





Friday, September 30, 2016

तुझपे दिल कुर्बान

अबकी  केरल  भाषण में  मोदी  जी  का  सख्त  लहजा , तेवर  और  गंभीर  मुख मण्डल  ही  बता  रहा  था  कि उनके  मन  ने  जरुर  कुछ  कर  गुजरने  की  ठान ली  है  l 

" हमारे अट्ठारह जवानों की शहादत बेकार नहीं जायेगी "

"पकिस्तान की आवाम देखो ......... देखो पहले कौन अपने देश की गरीबी और बेरोज़गारी ख़त्म करता है l "

सच ही मोदी जी कहा था " भारत प्रगतिशील देश है वो सॉफ्टवेयर निर्यात करता है जबकि पकिस्तान सत्तर साल से वहीँ अटका  है और बस आतंकवाद निर्यात करता है l "

उन्होंने पकिस्तान की आवाम से पकिस्तान के अत्यचारी नेताओं के खिलाफ आवाज़ उठाने का आह्वान किया l ,,,,,,
पकिस्तान बार-बार हमारे अंदरूनी मामलों में टाँग अड़ाता आया है चाहे वो जे एन यू हो या कश्मीर l अब मोदी जी ने पकिस्तान की जनता तक अपनी बात पहुँचाई है l जब पानी सर से ऊपर चला जाए तो ......जैसे को तैसा .......शठ को शठता ही समझ में आती है l  

गुप्त मंत्रणा कर रक्षामंत्री मनोहर परिकर, अजीत डोवाल जी , ले.ज.रणवीर सिंह जी, मोदी जी और सभी सैनिकों को, ४२ आतंकवादियों और दो सैनिकों को मार गिराए जाने के सफल अभियान की बधाई l  

हमारे  जवानो का तीन  किमी तक  रेंगते  हुए जाना अपना पराक्रम दिखाना और जिस उद्देश्य  और  लक्ष्य के साथ वो गए थे उसे पूरा कर सुरक्षित वापस लौट आना l उनके हौसले ,जज्बे , हिम्मत की मिसाल है l २८ सितम्बर के अँधियारे का   फ़ायदा उठाते  हुए लगभग ४० आतंकवादियों और  २ सैनिकों को मार उनके हथियारों को बर्बाद कर चार घंटे में ही आपरेशन पूरा कर अपने स्थान पर वापस आजाना समस्त भारतवासियों के मन में आत्मविश्वास जगा गया l कल बेचारे पकिस्तान का दिन ही खराब था हाकी में भी भारत के हाथों पिटा और सरहद पर भी l भारत ने पूरे ठसके के साथ ये स्वीकार किया कि हाँ मैंने सीमा पार की  और आतंकी ठिकानों को नष्ट किया यही नहीं उसने पहले ही लगभग ३० देशों को ये सूचना दे दी थी और उन्होंने इस बात का कोई विरोध नहीं किया इससे ज़ाहिर होता है की उनका मौन समर्थन मोदी जी के निर्णय के साथ था क्योंकि सभी देश ,पाकिस्तान एक आतंकी अड्डों का देश है इसे स्वीकार करते हैं l क्योंकि वे भी या तो इस आग में जल रहे है या जलता हुआ देख रहे है और देशों को l सार्क सम्मलेन में भारत सहित चार देशों का बहिष्कार भी पकिस्तान को अलग थलग देश घोषित कर रहा है l भारत भी यही चाहता है की युद्ध न हो बस  पकिस्तान की ताकत इतनी क्षीण हो जाए की वो आतंकी गतिविधियों से तौबा कर ले क्योंकि युद्ध का दुष्प्रभाव पीढ़ियों तक  देशों को शारीरिक, मानसिक और आर्थिक तौर पर अपंग कर देता है l जब जब भारत का कोई नेता पकिस्तान गया या पाकिस्तान से कोई नेता दोस्ती करने के उद्देश्य से भारत आया तब-तब भारत में बम धमाका सुनने को मिला l इससे ये भी ज़ाहिर होता है कि पकिस्तान सरकार का वहाँ की सेना या आतंकियों पर कोई बस नहीं l आतंकी वहाँ छुट्टा घूमा भी करते है और सरकार कुछ नहीं कर पाती जबकि वो भी लाल मस्जिद और पेशावर जैसे दर्द झेल चुकी है l


पकिस्तान भला pok में २८ को हुए हमले से आहत हो भी क्यों ? वो असमर्थ बेबस खुद आतंक पैदा तो करता है दुसरे देशों के लिए ,किन्तु उससे ख़तम करने या सामना करने की ताकत नहीं रखता इसलिए व खुद जर्जर और मजबूर है वो अगर चाहता भी है कि  आतंक ख़त्म हो तो उसके पास इतनी ताकत ही नहीं है की वो उसे ख़त्म कर सके l अमेरिका द्वारा लादेन को मारा जाना और भारत द्वारा इतने आतंकियों का मारा जाना उसके लिए उपहार ही है l जो काम उसे करना चाहिए था उसे दुसरे देश कर रहे हैं l हम अपने घर के कीडेमकोडों के लिए कुछ न करे और बाहर के लोग आकर कीटनाशक से कीड़े नष्ट कर जाए तो हमें क्या दिक्कत  भला ? इसमें दूसरे देश का पैसा दूसरे देश की मेहनत  दूसरे देश की ही सैन्य क्षमता लगती है l तो आतंकवादी भी ये समझ ले की पकिस्तान भी उनका नहीं है जिसके दमपर वो कूदता फिर  रहा है जिसदिन कोई ढंग की सरकार पकिस्तान में आई वो सही साठ ढूँढ उसका खत्म कर देगी l

फिर भी नमुराद पकिस्तान ये मानने को तैयार नहीं की pok में ये हमला हुआ है क्यों माने भला तब तो उसे स्वीकारना होगा की पकिस्तान में आतंकवादी है या फिर ये स्वीकार करे की उसके ४० जवान मारे गए l वो अपने ही झूठ में फँस गया है एक तरफ कहता है हमला हुआ ही नहीं और ये विडियोस और फ़ोटोज़ भारत ने अपने ही देश में बनाई है जब की भारतीय जवानो के हेलमेट में कैमरे फिट थे जिसमे पकिस्तान को पुख्ता सुबूत  दिया जा सके क्योंकि वो बहुत पल्टउऊआ देश है l और दूसरी ओर वो इस घटना की निंदा भी करता है और दो सैनिकों का मरना स्वीकार भी करता है l ये कैसा दोहरापन है उसका l

अब सोचने का विषय ये है कि हमारे १८,१९ सैनिक शहीद हुए थे और हमने ४० आतंकवादी मारे हैं तो क्या इतने बदले से संतुष्ट हो जाना चाहिए ? क्या एक सैनिक की कीमत दो आतंकवादी है ? सैनिकों का परिवार होता है ,भावनाएं होती हैं , देशभक्ति का जज़्बा होने के कारण परोपकार का भाव होता है वो अच्छे घर के अच्छे संस्कारों में पले बढ़े होते हैं उनकी संताने अपने पिता पर गर्व करती हैं उनका नाम छिपाती नहीं  और घर ही क्या पूरा गाँव पूरा शहर पूरा देश उनपर गर्व करता है l एक सैनिक और आतंकवादी की क्या बराबरी ? आतंकवादी की तो लाश भी उसके घर वाले और पाकिस्तानी  सरकार लेने से मना कर देती है l कहीं से भी बच्चे चुराकर बचपन से उनमे घृणा का भाव भर उसे आतंकवादी बनाया जाता है l

सर्जिकल स्ट्राइक की घटना पर हमें मोदी जी के निर्णय और सैनिकों को बधाई देकर खुश होना चाहिए पर अभी और बहुत कुछ करना है  पाकिस्तानी सरकार की नीतियों को बदलने को विवश करना है क्योकि विवश करना ही उसके लिए ठीक शब्द है समझ में तो उसे आता नही l आतंकवादियों  को छेदते हुए उनकी आड़ में काम करने वाली सेना तक पहुँचना है l वहाँ की सेना से बैर इसलिए क्योंकि वो आतंकवादियों की आड़ में अपना काम करती है l वर्ना  किसी देश की सेना से हमारा कोई द्वेष नहीं सब खुश रहे अपनी सीमा में रहे l मैत्री भाव से रहें l  




Tuesday, September 13, 2016

लेख ---चन्दन चर्चित छवि तेरी .....क्या खूब हिंदी हो मेरी


हिंदी भारत की ही नहीं विश्व की सबसे अधिक समृद्ध शास्त्रीय और वैज्ञानिक भाषा है l जो भाषा की ध्वनियों को जैसे का तैसे रूप में प्रस्तुत करती है l देवनागरी लिपि अपेक्षा संसार की अधिकांश लिपियाँ अत्यधिक त्रुटिपूर्ण हैं l इसकी तरह संसार की कोई भी लिपि ध्वन्यात्मक और वैज्ञानिक नहीं है और इसको देश-विदेश के सभी विद्वानों ने एकमत हो मुक्त कंठ से स्वीकार किया है l स्वर और व्यंजन का बहुत स्पष्ट अलग-अलग विभाजन है l स्वरों में भी मूल स्वर पहले और संयुक्त स्वर बाद में बहुत स्पष्टता से आते हैं l इसका उच्चारण स्थान तालू, जिव्हा, कंठ आदि बहुत हिसाब से पूर्ण वैज्ञानिकता के साथ हैं l उच्चारण अंगों को ध्यान में रख कर बहुत साधना के साथ चिंतन मनन और विश्लेषण के इसका निर्माण हुआ है l
आज दुनियाँ के समस्त देशों में भारतीय रह रहे हैं l दुनियाँ के लगभग डेढ़ सौ देशों देशों में ढाई करोड़ भारतीय रह रहे हैं और चालीस देशों के ६०० विश्वविद्यालयों और विद्यालयों में हिंदी पढाई जा रही है l विदेशों में हिंदी में पत्र-पत्रिकाएँ छप रही हैं l अमेरिका की विश्वा और मारीशस की आर्यवीर और जागृति प्रसिद्द पत्रिकाएँ हैं l ये हर्ष का विषय है की भारत ही एक ऐसा देश है जिसकी पाँच भाषाएँ विश्व की सोलह प्रमुख भाषाओँ में शामिल हैं l

संयुक्तराष्ट्र संध में शामिल होने के भारत की केवल खड़ी बोली के हिसाब से सर्वे किया गया जिससे अभी उसका स्थान संयुक्तराष्ट्र संघ के लिए निर्धारी नहीं हो पाया l पर ये क्यों नहीं हो पाया ये विचारणीय प्रश्न है lअगर देवनागरी से उद्धृत बोलियों मराठी, राजस्थानी, नेपाली, पंजाबी जैसी तमाम बोलियों को मिला कर गणना की जाए तो हिंदी भाषा विश्व में प्रथम स्थान पर होगी l इससे संयुक्त राष्ट्र संघ में उसे शामिल हो जाना चाहिए l इसके अतिरिक्त जनसंख्या की दृष्टि से भारत दूसरे नंबर का देश है जिसकी आबादी लगभग १२५ करोड़ है जो दुनियाँ भर के अंग्रेजी भाषी से अधिक हैं l 

भारतीय आर्य भाषाओँ की सभी भाषाओँ का अपने क्षेत्र में विशेष स्थान हैं किन्तु हिंदी भाषा का एक विशिष्ठ और महत्वपूर्ण स्थान है l अवधि ब्रज बुन्देली डोंगरी कन्नड़ आदि अलग-अलग प्रदेशों में अपने स्थान के कारण प्रसिद्द हैं l इन बोलियों में खड़ीं बोली का अलग स्थान इसलिए है क्योंकि ये किसी विशेष स्थान से सम्बंधित नहीं है l शायद ये खरी से इसे खड़ी कहा जाने लगा है l खरी मतलब शुद्ध, प्राकृत, विशुद्ध l भारत में खड़ी बोली का क्षेत्र बहुत विस्तृत है पश्चिम उत्तर और पूरब में इसने अपनी शुद्धता के बल पर अपना स्थान बनाया है l वर्तमान समस्त साहित्य का मूलाधार खड़ी बोली है l अब इस खड़ी बोली में उर्दू फारसी का समवेश होने लगा है l यही खड़ी बोली भारत की राजभाषा, राष्ट्रभाषा और साहित्य  भाषा है l साहित्य में जो स्थान इसका है भारत की अन्य भाषाओँ का नहीं l  
     
इंटरनेट की दुनियाँ में हिंदी को नई उड़ान दी है l जहाँ इंटरनेट पर पहले अंग्रेजी का वर्चस्व था अब हिंदी का भी महत्वपूर्ण स्थान है l हिंदी में मेडिकल और इंजीनियरिग जैसी उच्च शिक्षायें भी हिंदी होने में होने लगीं हैं l सरकार प्रदेशीय हिंदी माध्यम के विद्यालयों में उसकी स्थिति सुधरने में प्रयासरत है l दुनियाँ की अधिक से अधिक भाषाओँ का ज्ञान और यथा समय अनुकरण करना बुद्धिजीवियों का गुण है उन सबके प्रति आदरभाव और ज्ञान के साथ ही हमें हिंदी को समर्पण भाव से अपना कर चलना है l अतः हिंदी की स्थिति किसी प्रकार से शोचनीय नहीं है l 

जहाँ तक वर्तमान साहित्य की बात है लेखन का स्तर गिरता ही जा रहा है हलाकि इंटरनेट पर कुछ विद्वान हिंदी की पुरानी गरिमा बनाये रखने के लिए परिश्रम के साथ प्रयासरत हैं पर उसका फायदा तो वही उठा पायेगा जो सीखना चाहेगा l आजकल लोग त्वरित प्रसिद्धि तो चाहते हैं पर अध्ययनशील नहीं हैं l ये सच है की साहित्य या काव्य ऐसा हो जो जन-ग्राह्य हो शब्दों का चयन बहुत समझदारी से और सुन्दरता से हो किन्तु ऐसा भी न हो कि वो इतना सरल हो जाये की उसका कुछ स्तर ही न रहे l हिंदी संस्कृत की तनया है और हिंदी, साहित्य सृजन में पूर्णतया अपनी माता का तिरस्कार कर दे ये भी उचित नहीं l हमारे लिए कोई चीज़ तभी तक कठिन होती है जब तक वो हमें उसका ज्ञान नहीं होता l हमारी हिंदी के सहस्त्रों शब्दों के महा शब्दकोश में हजारों शब्द काल कोठरी में पड़ी रूपसी की तरह बिना बाहर आये छटपटा छटपटा कर दम न तोड़ दे l लोचन, अक्षि, चक्षु, नैन, दृग जैसे सुन्दर शब्द हमने प्रयोग किये हैं इसीलिए वो सरल लगने लगे हैं l नाव का बोहित शब्द कितना खुबसूरत है पर उसका प्रयोग हम क्यों नहीं करते ? हिंदी के तमाम शब्द बहुत खूबसूरती के साथ शब्दकोश से बाहर लाना भी हमारा कर्तव्य है l एक-एक शब्द के दसियों दसियों पर्यायवाची हैं जिन्हें हम मात्राओं के हिसाब से प्रयोग कर सकते हैं l 
    
 अन्य भाषाओँ के ज्ञान और प्रयोग के साथ हम घर के बच्चों के समक्ष बोलचाल की भाषा हिंदी रखें तो पीढ़ी दर पीढ़ी हिंदी की सौगात हम अगली पीढ़ी को  अनायास ही भेंट करते रहेंगे इससे अन्य लोग भी सुनकर प्रेरित होंगे नई पीढ़ी में अपनी राष्ट्रभाषा के प्रति सम्मान बढेगा और हिंदी नित नई उचाईयों को हासिल करती रहेगी l

.....आदर्शिनी श्रीवास्तव ... मेरठ 

Thursday, September 8, 2016

कविता ----उस बिटिया की वो बिटिया दुनियाँ ही थी

उस बिटिया की वो बिटिया दुनियाँ ही थी
जिसके दुःख से
तड़प रहे थे कातर स्वर
स्तब्ध खड़े थे
दिग्दिगंत निशब्द वहाँ
कितना निष्ठुर है
 लीला करने वाला
उस मालिन को कुछ था
अपना होश कहाँ
उस बिटिया की वो बिटिया दुनियाँ ही थी
ज्वर से पीड़ित देंह
अशक्त ढीला-ढीला
मौन भी भय से
मौन खड़ा पीला-पीला
अवचेतन में जो भी शब्द
ठहरते मुख पर
दर्द में डूबे लावों से
गिरते थे सब पर
सब चुप थे पर कहते थे
वो कैसी होगी ?
उस बिटिया की वो बिटिया दुनियाँ ही थी
भीतर गाढ़ा रक्त हुआ
दुःख से तन का
क्रम साँसों का
काया में रह रह अटका
निश्छल बालापन था
नैनों में आता
छुप-छुप कर
खारे घट को था लुढ़कता
आवाक् खड़े थे
सब ढाढस देने वाले
उस बिटिया की वो बिटिया दुनियाँ ही थी

.......आदर्शिनी श्रीवास्तव..........












Wednesday, September 7, 2016

गीत -- मतवाले अहि को जो छेड़े कौन हुआ है दीवाना

नवजागृति का है संदेसा 
अवरोधों का बढ़ जाना 
मन के संकल्पों को किसने 
सुख के क्षण में पहचाना 

स्वप्न-नीड़ को छोड़ बटोही 
उड़ ले नील गगन में तू 
अब रच तू तारों का मण्डप
रह ले दीप-भवन में तू 
मणि रत्नों से भरा पड़ा है 
ह्रदय देश का तहख़ाना

हारे मन की रोक रागिनी 
उठ प्रस्तर से टकराने 
या उर्वर धरती को बंजर 
करके रख ले सिरहाने 
भीतर के हठ के स्रोतों को 
बह जाने दे मनमाना 

श्रीहीन इस मुखमण्डल को 
धो ले रवि की लाली से 
रीती के दे जो मन -वीथी 
कुछ मत चख उस प्याली से 
मतवाले अहि को जो छेड़े 
कौन हुआ है दीवाना 

...आदर्शिनी श्रीवास्तव ...



Wednesday, August 31, 2016

हंगामा है क्यों बरपा थोड़ी सी जो पी ली है

वैसे कुछ रोज़ पहले संदीप कुमार ने रोज़ अपनी पत्नी के पैर छूने की बात कही थी l किन्तु ये जरुरी नहीं कि उन्होंने असत्य ही कहा हो क्योंकि उन्होंने ऐसा बिल्कुल नहीं कहा था कि वो झुक कर अपने हाथों से अपनी पत्नी का पैर छूते हैं l वो खड़े-खड़े लात से लात भी मार सकते हैं l दुनियाँ में अबतक तो कोई भी महापुरुष ऐसा नहीं दिखा जिसका दंभ इतना कमजोर हो की वो पत्नी का पैर छू ले l हाँ पर संदीप कुमार जैसे लोगों को समाज के सामने अपने परिवारजनों के लिए समर्पण भाव दिखा चाटुकारिता कर पत्नी बच्चों की विश्वास में लेना ही पड़ेगा l वरना वे विश्वासघात कैसे कर पाएंगे? बाहर बच्चों और पत्नी से इतनी आसानी से गुल खिलने का मौका कैसे मिलेगा ?

दुःख है उस घर के सदस्यों पत्नी बच्चों के लिए जिसने अपने आत्मीय की कथा टीवी अखबारों में इस तरह देखी, पढ़ी और सुनी l एक पत्नी से अगर अब ये उम्मीद की जाए की वो पहले की तरह शांत भाव से अपने पत्नी धर्म का पालन करे तो ये उसके प्रति ज्यादती ही होगी l संदीप कुमार के बच्चों की मनःस्थिति सोच अफ़सोस होता है क्या सम्मान दे पायेंगे अपने पिता को ? या पिता का ऐसा घृणित आदर्श देख उनके व्यक्तित्व किस तरह से प्रभावित होगे ? वे भविष्य में सही रास्ता चुनेगें या गलत ? स्कूल, ऑफिस, समाज में किस तरह किसी की आँखों का सामना कर पायेंगे ?

'आप' के समर्थक इस बात से अवश्य फ़क्र महसूस कर रहे होंगे कि आधे घंटे के अन्दर ही केजरीवाल ने महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के मंत्री संदीप कुमार को पद से निलंबित कर दिया l इससे पहले भी जितेन्द्र तोमर को फ़र्ज़ी डिग्री के मामले में और आसिम अहमद खान को पैसे के लेन-देन के मामले में केजरीवाल पदच्युत कर चुके हैं l मगर क्या मात्र पद से हटा देना ही एक मात्र विकल्प है या दण्ड है ? पहले के दो लोग जो पद से हटाये गए उनपर क्या कार्यवाही हुई ? अगर ऐसे महत्वपूर्ण पद पर रहने वाले लोगो को उचित दण्ड नहीं दिया गया तो बात जबतक ताज़ी है दोषी चुपचाप बैठे रहेंगे फिर कोई नई पार्टी ज्वाइन कर पहले की तरह ही दुष्कर्म में लिप्त रह अलगी पीढ़ी को मानसिक नुक्सान और देश को असम्मानित करते रहेंगे l
......आदर्शिनी श्रीवास्तव ....

   

Tuesday, August 30, 2016

लेख --ताकतवर का कानून



जैसे-जैसे धर्मग्रंथों की शाखाएँ-प्रशाखाएँ निकलतीं गईं धर्म लोगों से दूर होता गया l वेदों और वैदिक मन्त्रों की ध्वनियाँ और यज्ञों के हवन की सुगंध धूमिल होती गई l लोग अलग-अलग वृतांतों से भ्रमित होने लगे तमाम बातों में अविश्वास बढ़ने लगा, विचारों की पावनता नष्ट होने लगी, नैतिकता शून्यता के कगार पर आ गई l
आजकल खुबसूरत से खुबसूरत पत्थरों, संगमरमर की बनी मूर्तियाँ मंदिरों में लगाने का प्रचलन जोरों से बढ़ रहा है l  मानव निर्मित मिट्टी, पत्थर की सुन्दर मूर्तियाँ हमें आकर्षित करती हैं हम उसे अपलक देखते रह जाते हैं मानव की उत्तम सृजनशीलता और ईश्वरीय आनंद में हम खो जाते हैं l मन भ्रमित हो कभी उस कला को देखता है कभी ईश्वर को खोजता है l इसके मतलब कि वो खुबसूरत प्रतिमाये हमारी आराधना में, ईश्वर से सीधे संपर्क में  व्यवधान डाल रहीं है l अगर कोई चर्च या मन्दिर, मस्जिद में आँखें बंद किये बैठा हुआ अपने विचारों को सांसारिक विषयों में भटकने देता है  तो ईश्वर अच्छी तरह समझते है कि उनकी पूजा नहीं हो रही किन्तु यदि कोई किसी धातु की मूर्ती के आगे झुककर उसे सर्वव्यापी परमात्मा का जीता जागता चिह्न और स्मारक मान तन्मय हो पूजा करता है तो ईश्वर उसकी पूजा अवश्य स्वीकार करते हैं l इसलिए मूर्ति पूजन कोई दोष नहीं ये ईश्वर से संपर्क की एक कला है l .......... किन्तु जब वो परमात्म भाव आस्था से खीच मूर्ति तक लाना ही हैं या जब ये कला आ ही गई तो मूर्ति की भी क्या ज़रूरत अब उसे सीखे ह्रदय तक ही क्यों न लाया जाए l     
वैदिक मन्त्र निराकार, सर्वशक्तिमान, अजन्मा, अनन्त, नित्य पवित्र सृष्टिकर्ता ईश्वर की उपासना करता है किसी निश्चित आकार की नहीं l पूजित होती है सिर्फ एक ज्योति, सिर्फ एक ओम............ जो भक्त का सीधा तादात्म्य जोड़ता है उस चिन्मय सत्ता से जिससे सर्वस्व संचालित होता है l उसमे किसी प्रतिमा का आकार, रंग, वेशभूषा व्यवधान नहीं डालती l
प्राचीन समय में मात्र सत्व ही धर्म था l बिना प्रतिमाओं के मात्र तपस्या और सदाचरण ही धर्म था l यही आध्यात्मिक लक्ष्य और आत्मिक उन्नति का मार्ग था l प्राचीन काल में लोग तपस्या कर अनेकानेक शक्तियों को उस सर्वान्तर्यामी से पा लेते थे l गीता, महाभारत, बाल्मीकि रामायण जैसे ग्रंथो में कहीं मन्दिर और मूर्ति पूजन का ज़िक्र नहीं है l हाँ यज्ञ के लिए सीता की प्रतिमा की बात अलग है l कहा जाता है की सर्वप्रथम तीर्थंकर पर्श्वनाथ, शिवलिंग, विष्णु जी की मूर्तियों का निर्माण हुआ l बाद में अन्य मूर्तियों का प्रचलन बढ़ा l उससे पहले ध्यान से ही पूजा की प्रथा थी l फिर तो बाद में धर्म ग्रंथों के महान पात्रों की मूर्तियाँ बनने का रेला ही शुरू हो गया l फिर पौराणिक ग्रंथों के छोटे बड़े पात्रों के भी मन्दिर बनने लगे l एक पत्थर रखा चन्दन धूप किया धीरे धीरे चहारदीवारी भी खिंचवा दी और पोंगा धर्माधिकारियों का झूठ और लूट का व्यवसाय चल निकला  l प्रयाग के मीरापुर क्षेत्र में पन्द्रह बीस साल से एक मज़ार रास्ते में पड़ती थी सूनी सी अकेली सी, देखते देखते एक रोज़ उसपर हरी चादर उढ़ा दी गई दुसरे दिन से उसपर अगरबत्ती की सुगंध महकने लगी l उस स्थान पर किसी का सोया स्वामित्व जाग गया l ...... सीधे-सादे भोले लोगों का सीधा संपर्क उस असीम अनंत सत्ता से टूट गया और पंडितों, मूर्तियों, लड्डुओं के आडम्बरों में फँस कर सर्वभूतान्तार्यामी तक पहुँचने की जद्दोजहद होने लगी l भला क्यों सुनते भगवान् ? भक्त आडम्बरों में लिप्त होते गए और धर्मस्थलों की दीवारों में उलझकर रह गए l किसी ने इसपर कीचड उछाला किसी ने उसपर l सही रास्ता छोड़ धर्म-धर्म लड़ पड़े l
इधर आडम्बर बढ़ते गए उधर ताकतवर का कानून सक्रीय होता गया l जिसमे जब ताकत आई उस उस जगह एक ढाँचा तोड़ दूसरा ढाँचा स्थापित कर दिया l जीता जागता और परतों में दबा इतिहास तेरे-मेरे की जंग पर अड़ गये l ताकतवर के कानून के पदाधिकारियों में एक तरफ धार्मिक आडम्बर था तो दूसरी तरफ दंभ और आत्मग्लानि को छुपाने का नाटक भी l वो दूसरों को बंधन में रख अपने स्वामित्व भाव से खुश हो पोषित होते रहे l पर एक दिन ऐसा आया की उस दंभ और स्वामित्व भाव से त्रस्त अपना अधिकार चाहने वाले नींद से जाग गए फिर तो जैसे धरती ही डोलने लगी और वो भूडोल घर, गली मुहल्ला, कागज पत्तर, बिजली उपकरणों को भी हिलाने लगा l ये भूडोल हर धर्म में एक जैसा था  किसी में कम तो किसी में कुछ ज्यादा ही l शबरी मन्दिर, सिह्नापुर महाराष्ट्र का शनि मन्दिर,  हाजी अली दरगाह इसी ताज़ा ताकतवर के कानून का परिणाम है l ......... पुराने समय की तरह इस समय भी ये पूजन स्थल न होते तो झगड़े का एक बहुत बड़ा विषय ही न होता l कुछ सेवार्थ आश्रम स्थल होते और कुछ थकित पथिकों के विश्रामालय बस l   
पूजने को इस जगत की प्रकृति का कण-कण ईश्वर प्रदत्त होने के कारण पूज्य है l जिसमे मानव और प्रकृति एक दूसरे में एकाकार होकर गुँथे हुए हैं l प्रकृति की शक्तियाँ मानव सेवा के लिए मिलजुल कर काम कर रहीं हैं l सूर्य, पृथ्वी, वायु, वर्षा मिलजुल कर मनुष्य के लिए अन्न फल उपजा रहे हैं l बस मनुष्य ये बात समझ उसे अपने हुनर से सवाँर कर लाभान्वित हो ईश्वर का आभार व्यक्त करना हैं l

तमाम पौराणिक ग्रंथों को पढने के बाद ये ही निष्कर्ष निकला कि नैतिक उत्थान, अहंकार का नाश, परोपकार और प्रत्येक काम करते हुए भी हमेशा मन में ईश्वर के प्रति आभार भाव ही धर्म है l फिर न घण्टों धार्मिक स्थलों पर पूजा आराधना की ज़रूरत न संसार से भाग कर जंगल में जा तपश्चर्या की l क्योंकि अगर संसारिकता से मन नहीं हटा तो पूजा आराधना व्यर्थ है l संसार के समस्त कर्तव्य करते हुए हर ख़ाली समय में अपने मन को उस असीम तत्व में खुद को निमग्न करन है जैसे एक उत्कट प्रेमी अपने संग को याद करता है l ईश्वर अवसर आने पर हर बात सुनेंगे l 
......adarshini srivastava......

    

Thursday, August 25, 2016

गीत .... कृष्ण ..... मेरी जल से हुई है गागर भारी

मेंरी जल से हुई है गागर भारी
हेरी सखी ...हम दोनों ही हैं सुकुमारी 
हाँ SSS मेरी जल से हुई.....l

छलिया है वो ताक लगाए 
मटकी फोड़ें मुझको भिगाए 
ऐसा है ब्रजनार वो नटखट 
लोग कहें.... ये हैं त्रिलोकी त्रिपुरारी
हाँ SSS मेरी जल से हुई.....l

माखन देख के जिया जुड़ावे 
क्षीर देख घर बाहर धावे
मोह भरे खीजत हैं यसुदा  
ओरे कान्हा.... काहे सताओ महतारी  

सखी जरा समझाओ पैजनियाँ 
आवेगा कस भरूँगी पनियाँ
छोरा निसदिन नाच नचावे 
हे री सखी..... कैसे पुकारूं गिरधारी

तुरत हुआँ पर आए कान्हा 
गगरी उठा सर धर दिए कान्हा 
लोचन बंकिम मार कटारी 
गोपी रहीं... भौचक अचंभित मनहारी 
....आदर्शिनी श्रीवास्तव....

  

Wednesday, August 24, 2016

गीत ..कैसे तुमको आभास हुआ


हैं मन से मन का कुछ बंधन 
या बस मुझको बहलाया है
इस सरल सूक्ष्म मन चेतन को 
आ होले से सहलाया है 
उत्फुल्ल आनंदित हो बैठा 
जो मन था अबतक बुझा बुझा 
तुम दिखे सुखद अहसास जगा ....

तेरे आने  से ही पहले 
वायू का झोंका आ बोला 
ठहरो-ठहरो कुछ सहज रहो 
आकर कानों में रस घोला 
पीछे मुड़ कर तो देख जरा 
आता है तेरा  कोई  सगा 
बह पल उस क्षण ही खास हुआ ...

वो देखो तुझसा ही कोई
धीमे क़दमों से आता है
वो हाथ हिलाता नहीं मगर 
धड़कन का शोर सुनाता है 
सोंधी सोंधी माटी महकी 
मन-मृग ने चौकड़ भर डाली 
मुखड़े पर एक मधुहास खिला 

अब ही मेरा प्रस्थान हुआ 
कैसे तुमको मालूम हुआ 
आँखों के सम्मुख देख तुम्हे
तनिक मुझे विशवास हुआ 
मन में जागा एक कौतुहल 
था शब्द बिना ही कोलाहल 
ये उर तेरा आवास हुआ     
......आदर्शिनी श्रीवास्तव 

Monday, August 22, 2016

गीत --गुंजित होती स्वर गंगा

मधुबन के आँचल से लेली 
प्यार भरी भीनी खुशबू 
थोड़ी पूजा के आँगन से 
ले मंत्रित गीली माटी
और हवा से पुरवाई की 
शीतलता ले छाँव घनी 
तब सौभाग्यजनों के घर में 
माँ ने बेटी एक जनी

शीतलता में छाँव सरीखी 
ऊष्मा फागुन माघ की 
कोमल ऐसी फूल पाँखुरी
ज़िद्दी है तूफ़ान सी 
भाव समेटे अनगिन भीतर
घर आँगन रंगा-रंगा 
मीठी किलकारी से घर में 
गुंजित होती स्वरगंगा
आज तोड़ने आई है वो 
घिसी-पिटी सी परिपाटी 
सारे जग में चमक रही है 
ऐसे जैसे हीरकनी 
तब सौभाग्यजनों के घर में 
माँ ने बेटी एक जनी 
.....आदर्शिनी श्रीवास्तव....

  

Sunday, August 7, 2016

नेताओं के अजीब अजीब बयानों पर

बहुत कठोर मगर कहती हूँ
विश्व मरणासन्न है, भारती को दम धुट गया
रक्षकों विश्वास मेरा लुट गया
प्रेमिका के दर्द से शाप देने वाले 
नलकूबर कहाँ हैं ? कौन हैं?
ब्रह्मा पुन्जक्स्त्सला पर 
अत्याचार होते देखकर भी क्यों मौन हैं?
दोष किसको दें? कौन जिम्मेदार है ?
गर्म लावा पीते परिजन
अर्थी उठाते कहार हैं l
सब एक थाली के हैं चट्टे पट्टे
कुछ मुँहचोर तो कुछ हैं मुँह फट्टे
नहीं रोकेंगे ये किसी को
इंतज़ार में हैं उसी आग में खुद भी जलने को
बनते हैं भोले, भविष्य से अनजान हैं
बेपरवाह इस भय से मुक्त कि
गली गली हो सकता है बुलंदशहर , बरेली, दिल्ली 
और उस शहर में कोई हो सकता है हमारा अपना भी
सड़क के शोर में दफ़न होती आवाज़ के साथ......
सत्य छुपाते लोग, ओज के रोग से पीड़ित मूक कविलोग
चिल्लाते हैं देश-किसान-सरहद-तिरंगा
क्या नहीं दिखता किसी मजबूर का देंह नंगा ?
जीत लो विश्व पर घर में हार रहे हो
विरोध करो, आवाज़ उठाओ
क्यों आत्मा मार रहे हो ?
दे दो दोष परिवर्तित नारी को क्योंकि
वही बढ़ा रही है आतंकवाद-नक्सलवाद
वही करा रही है सीमा पर गोली बारी
वही करा रही है चोरी-ठगी की वारदातें
वही करा रही है साम्प्रदायिक दंगे
उसी के कारण रोकी गईं हैं ट्रेने
फूँकी गईं हैं बसें, हाईजैक हुए हैं विमान
वही करा रही है संसद में कुर्सियों की उठा पटक
उसी के कारण हो रहे सत्र शून्य
उसी के कारण देखें गएँ हैं
आई हेट इण्डिया के बैनर
विश्व की सम्पूर्ण गालियों की उत्पत्तिकर्ता है वो
दोषी है.... वो उसे मार डालो....
भ्रूण में, दहेज़ मेंचिता में, तंदूर में, तेज़ाब से, आक्षेपों से ,
जितना कुछ दुर्गठित है उसी के कारण तो है .........
दोषी है वो दो साल की बच्ची
जो नहीं जानती कपड़ों का महत्त्व,.....
दोषी है वो सात साल की बच्ची
जिसने दो पैरों वाले जानवर अभी अभी देखें हैं,.....
दोषी है वो घर में चाय बनाती हुई चौदह वर्षीया बाला  
जो घर में घुसे लोगों से घसीट कर लाई गई है किचन से......
दोषी है गाँव की वो बीस वर्षीय अध्यापिका
जो सूती दुपट्टा से तन ढाँके
जा रही थी बच्चों को संस्कारित करने,.......
दोषी है साड़ी में लिपटी पचास वर्षीया प्रौढ़ा जो  
गृहस्थी के सामान के लिए जा रही थी बाज़ार,.......
दोषी है वो साठ वर्षीया वृद्धा
जिसके पीछे नाचतीं थी दो पीढियाँ
पर हार गई द्विपदीय कुत्तों से.......
हर एक घटना पर दोषी है वो .....
दोषी है वो ..... दोषी है वो ......
मत जागो तुम !
तो लो, अब नहीं रुकेगा ये पागल नर्तन
जब धर्म रो रहा है न्याय पड़ा सो रहा है
पातक प्रचण्ड से प्रचण्ड होता जा रहा है.......
पर तुम्हे नहीं दिखता किसी भी साईट पर
उत्तेजक अभद्र स्थिर, चलित विज्ञापन ?
लोभी हो तुम, नहीं रोकोगे इसे
क्योंकि विज्ञापनों के धन से बढ़ाते हो अपने ऐश्वर्य,....
बनाते हो रोगी हर उम्र की मानसिकता को,
अंधे, गूँगे, बहरे लोगों मुँह खोलो
बोलो, विरोध करो, दण्डित करो  .....
फाँसी दो , दाग दो गर्म लोहे से
उन अमानुषिकों को , कर दो चिह्नित कि
यही वो आदमखोर हैं यही हैं आदमखोर
पर तुम ये नहीं कर सकते , अधकचरे जो हो.....
इसके लिए चाहिए लौह मन और निर्लिप्त आत्मबल
पर अगस्त के अखबार में पन्द्रह दिन नित्य छपते
इस वाक्य को होठों पर लाते तनिक शर्म मत करना
माँ तुझे प्रणाम..... माँ तुझे प्रणाम.... माँ तुझे प्रणाम