Monday, August 22, 2016

गीत --गुंजित होती स्वर गंगा

मधुबन के आँचल से लेली 
प्यार भरी भीनी खुशबू 
थोड़ी पूजा के आँगन से 
ले मंत्रित गीली माटी
और हवा से पुरवाई की 
शीतलता ले छाँव घनी 
तब सौभाग्यजनों के घर में 
माँ ने बेटी एक जनी

शीतलता में छाँव सरीखी 
ऊष्मा फागुन माघ की 
कोमल ऐसी फूल पाँखुरी
ज़िद्दी है तूफ़ान सी 
भाव समेटे अनगिन भीतर
घर आँगन रंगा-रंगा 
मीठी किलकारी से घर में 
गुंजित होती स्वरगंगा
आज तोड़ने आई है वो 
घिसी-पिटी सी परिपाटी 
सारे जग में चमक रही है 
ऐसे जैसे हीरकनी 
तब सौभाग्यजनों के घर में 
माँ ने बेटी एक जनी 
.....आदर्शिनी श्रीवास्तव....

  

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