Friday, June 3, 2016

गीत ... बसंत --- सँवर गई वसुंधरा ----



लो सोलहो सिंगार कर सँवर गई वसुन्धरा
विवश हुए हैं देवता भी देखने को ये धरा

गगन से छन उतर रही
है गुनगुनी सी धूप अब
निखर-निखर, बिखर रहा
है रूपसी का रूप अब
अनेक पुष्प रंग से
सजा हुआ है आँचरा
समय की कर उपासना
समीर अनवरत बहा
देख ऋतु बसंत को है खुश हुआ पपिहरा

किरण को ओढ़ दूर्वा
हुई है और मखमली
गुलाल गाल हो गए
सजा के ओस जब चली
निरख रहा है दूर से
हेमंत कुछ डरा-डरा
लो एक वर्ष के लिए
मैं अब ढहा कि तब ढहा
लता का पीत पात ज्यों सुवर्ण पत्र हो खरा

हवा में पुष्प गंध की
लहर रहीं हैं चादरें
पलाश बिछ जमीन को
लगा रहा महावरें
बसंत से सजी धरा
सम्हल-सम्हल-सम्हल जरा
अनंग मद की आपगा में डुबकियाँ लगा रहा

पलक-पलक निहारते
सभी इसे हैं प्यार से
कि जैसे पंखुड़ी को ओस
छू रही दुलार से
नक्षत्र दीपिका लिए
है ज्योति नग झरा-झरा
गगन के बीच चन्द्रमा
है मंद-मंद हँस रहा
नशे में सप्त स्वर हुए खिला खिला है मोंगरा
......आदर्शिनी श्रीवास्तव ........
गीत -- परिवर्तन
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परिवर्तन तो प्रकृति की सहज प्राणधारा है
जिसपर हमने वर्तमान को शनैः-शनैः वारा है

इस प्रकृति में सहज भाव से
पल-पल बहते जाना
या केवल निष्काम भाव से
कर्म को करते जाना
सम्हल-सम्हल कर बदलावों को
 खुलकर स्वीकारा है
जिसपर हमने वर्तमान को शनैः-शनैः वारा है

हम न जाने कब अपना मन
ही चुपके से बदलें
फिर पिछले मन को सींचें
या बदलेपन का सुख लें
हर क्षण, हर पल बदल रहा
परिवर्तन बंजारा है
जिसपर हमने वर्तमान को शनैः-शनैः वारा है

परिवर्तन में नवरसता,
नवचेतन, नवआकर्षण
सुख में दुःख का दुःख में सुख का
शीतल सा जलवर्षण
भावों जैसा व्यभिचारी
ये धुँधला-उजियारा है
जिसपर हमने वर्तमान को शनैः-शनैः वारा है
........आदर्शिनी श्रीवास्तव ........
गीत - लो हवा की तरंगे भी दुल्हन हुईं
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कुछ ठहर कर चलीं कुछ झिझक कर चलीं
लो हवा की तरंगे भी दुल्हन हुईं

काकली कूँज से मन हुआ बाँवरा
बंसवारी में गूँजा स्वतः दादरा
कामनाओं से कम्पित हो काया नगर
चूड़ियों-नूपुरों की छननछन हुईं

झोर पुरवा चलीं झोर पछुआ चलीं
घेर कर हर तरफ से हुईं मनचलीं
सबसे छुपकर पवन आँचरा ले उड़ा
धड़कने जिस्म की हैं सुहागन हुईं

टहनियों से मिलीं टहनियाँ झूमकर
फूल खिलने लगे मौज में डूबकर
बरखा आँगन में बरसी बिना बादरी
नर्म माटी ही चन्दन का लेपन हुईं

एक स्वस्तिक पवन प्रेमियों के लिए
फूल झरने लगे वेणियों के लिए
एक मीठी छुअन कोरे अहसास की
सारी बगिया ही मानों तपोवन हुईं
.....आदर्शिनी श्रीवास्तव ....