Saturday, December 29, 2012

प्यारी तमाम बेटियों को आदर्शिनी माँ का एक सन्देश
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1-गर्व करो नारी हो तुम, सद्विचार है तुमसा कहाँ?
गिनती में नर से कम हो फिर भी सर झुकाता है जहां
पथ कंटीले पार कर मंजिल तलक पहुंची हो तुम
तुम सही,.. जालिम हैं वो, जो मिटा रहे तेरा निशां

2-बढ़ चलें है गर कदम डर से इन्हें न रोकना
आँख अपनी खोल पर, वातावरण को तोलना
जो धुंध गहरी लग रही छंट जायेगी ये एक दिन
हर कदम रखने से पहले बस पड़ेगा फूंकना 


जब पूरे देश की कन्याये बस में ६ लड़कों द्वारा हैवानियत का शिकार हुई लड़की की दुर्दशा देख 
अपनी सुरक्षा के प्रति चिंतित और सहमी ही थी उस समय उनके हौसले को बढाने और उन्हें कर्मपथ 
पर बढ़ने की प्रेरणा देने हेतु ये रचना की
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3-साथ पढना साथ लिखना साथ होती मस्तियाँ 
प्रश्न ये झुलसा रहा क्यों बढ़ रहीं हैं खाईयाँ 
इक दुसरे के मित्र हो समझो मनो के भाव को 
तकरार होती है सभी में होती कहाँ हैं लड़ाईयां 

4...सौगंध ले लो आज से रक्षा का दृणसंकल्प ले लो 
साथ हँसते खेलते बिताये तुम सारे वर्ष ले लो 
बद्नज़र जो भी उठे, वो तुमसे होकर ही बढे 
मन से अगर कोई हाथ थामे हाथ में तुम हाथ ले लो 

३ और ४ नंबर के दो मुक्तक उन सह शिक्षा में पढने वाले सहपाठियों के नाम जो स्कूल में रह हर 
कार्यक्रम में साथ-साथ भागीदारी करते है और मित्र की तरह रहते हैं 
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5- तुम पर आज कोई भी नहीं इलज़ाम रखती हूँ
बने गमख्वार हो मेरे बड़ा एहसान रखती हूँ
अलख तुमने जलाई है उसे तुम बार कर रखना
जाते-जाते हुए हांथों तेरे काम रखती हूँ
 

 सिंहापुर पुर से ३० तारिख की रात में लौटा पीड़ित कन्या का पार्थिव शरीर अपने पीछे लोगों को एक जिम्मेदारी सौप गया ...तब ये ५वामुक्तक 
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इस अन्नत नभ के पीछे भी
कुछ तो हलचल जारी है,
चादर नीरवता की ताने
पर शोर भयंकर भारी है,
शांत दिख रहे सागर का
अंतस भी घायल है समझो,
स्थिर धरनी के अंतर में भी
एक बवंडर भारी है,
जीवन मृत्यु का खेल अजब
इसको पाना उसको खोना,
जीवित सा दिखने वाला कण
क्या निश्चित है जीवित होना?
जिसके दम से स्पंदन है
जब वह ही साँसों को चाहे,
तब होगा सब स्वीकार सहज
फिर क्या पाना और क्या खोना,
सभी बच्चों को क्रिसमस की बहुत बहुत बधाई
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जिंगल बेल की टुनटुन धुन पर कान लगाओ न...
पिछले दुख को भूल के थोडा सा मुस्काओ न.....
जी करता सेंटा बन जाऊं
ख़ुशी के तोहफे खूब लुटाऊं
गीली आँखों को तुम अपनी
आज सुखाओ न... थोडा मुस्काओ न.....
देखो सुबह है आज रुपहली
कोहरे से झांके किरण सुनहरी
तू हँसे हम ख़ुशी से रो दें
मुझे रुलाओ न... थोडा मुस्काओ न....
मोज़े में खुशियाँ तुम ले लो
झोली में अड़चन तुम दे दो
फिर भी कोई उलझन हो तो
मन में कोई हलचल हो तो
आँख मूँद "दर्शी" कह करके इधर उड़ाओ न...
जिंगल बेल की टुनटुन धुन पर कान लगाओ न...
पिछले दुःख को भूल के थोडा सा मुस्काओ न...
..........आदर्शिनी "दर्शी"........

मेरी इस रचना में उदासी का कारण ...........मेरी ये रचना उस घटना के बाद की है जब देश की एक बेटी दरिंदों का शिकार हो जिंदगी और मौत के बीच झूल रही थी और पूरा देश उसको न्याय के लिए गुहार कर रहाथा
......पूरा किन्तु अधुरा सा..........

मानस पर तेरा छा जाना
फिर ढल सपनों में आ जाना
श्यामल रैना में आभा बन
बहुरंगे चित्र सजा जाना

प्रमुदित बैठे कल-कल तट पर
प्रेम प्रबल उर्मिल मन भर
तीरे-तीरे चलना हाथ थाम
हर ताप ह्रदय का छंट जाना
मानस पर तेरा छा जाना

उलीच दिया उर गागर सब
कम्पित-कम्पित द्वि अधरों से
भ्रमर चितेरे नयनों में फिर
दिवास्वप्न दिखला जाना
मानस पर तेरा छा जाना
फिर ढल सपनों में आ जाना