Saturday, December 29, 2012

......पूरा किन्तु अधुरा सा..........

मानस पर तेरा छा जाना
फिर ढल सपनों में आ जाना
श्यामल रैना में आभा बन
बहुरंगे चित्र सजा जाना

प्रमुदित बैठे कल-कल तट पर
प्रेम प्रबल उर्मिल मन भर
तीरे-तीरे चलना हाथ थाम
हर ताप ह्रदय का छंट जाना
मानस पर तेरा छा जाना

उलीच दिया उर गागर सब
कम्पित-कम्पित द्वि अधरों से
भ्रमर चितेरे नयनों में फिर
दिवास्वप्न दिखला जाना
मानस पर तेरा छा जाना
फिर ढल सपनों में आ जाना

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