Thursday, September 13, 2012

झर-झर स्वर

मुग्ध शिखी का केकी रव
नभ से झरता मुक्ता मोती
विहग शांत नि:स्वन नीडों पर
टुकुर तकते रवि की ज्योति

प्रभा चली अस्तातल में
आकाश पात्र जल से भरकर
फैले नीरव निशि करतल में
करता अनन्त नभ झर-झर स्वर

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