Wednesday, July 27, 2016

गीत--पथरीले घर में रह कोई मौसम पर क्या गीत लिखे

सिमट गए उद्दीपन सारे न बारिश न धूप मिले
पथरीले घर में रह कोई मौसम पर क्या गीत लिखे

बीती माधव ऋतू रूठी सी
सावन में सूखी काया
थकित देंह पर हिमकर ने भी
रजत अमिय कब छलकाया
सारे अनुभव रूठे-रूठे
परिवर्तन के मोल बिके
पथरीले घर में रह कोई मौसम पर क्या गीत लिखे

पत्थर की धरती दीवारें
अँगनाई न तरुछाया
न तितली का चंचल रंजन
न मधुकर ने ही गाया
गीत हृदय में हुए है बंदी
अधर हुए हैं सिले-सिले
पथरीले घर में रह कोई मौसम पर क्या गीत लिखे

सुना है सावन सरसाया है
जल्द सुधा बरसाते हैं
स्वाती, कृतिका, रोहिणी, चित्रा\
नक्षत्रों की बाते हैं नन्हे हाथों में नावे पर
मुझसे मौसम खिंचे-खिंचे
पथरीले घर में रह कोई मौसम पर क्या गीत लिखे
.....आदर्शिनी श्रीवास्तव ....