Thursday, August 4, 2011

maa bharti

ऐसा नहीं की शुन्य लेखनी,
है तेरी कृपा माँ भारती,
उर को किन्तु भाता नहीं
जो उकेरती है लेखनी

शब्द.........साहित्य में डूब निकले
हिंदी हो या फारसी
मानस मन सम्मोहित करूँ
ये चाहती है लेखनी

है प्रेम की सरिता ह्रदय में
बिखेरती है ज्योत्स्ना
अद्भुत प्रसंग पर दृष्टि पड़े
ये चाहती है लेखनी

कुछ भक्ति हो कुछ देश-हित
कुछ ज्ञानयुक्त दे माँ भारती
सामग्री जो काव्यबद्ध सजे
जनहित बरसाए ये लेखनी

यूँ तो अनेक प्रसंगों पर
रचनाएँ रचित हुई कई
रचनाये जो अमर हुई
सत्य वही है लेखनी

सृजन से वंचित क्यूँ 'आदी'रहे
श्रद्धा-पूरित है जब लेखनी
भावस्रोत प्रस्रित आज करो माँ
जो अमर करे 'आदर्शिनी'
आदर्शिनी श्रीवास्तव

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ख्वाब में अद्भुत अजूबी एक दिवार देखी

खुदे शब्दों की तमाम इबारत देखी

कहीं नज़म कहीं ग़ज़ल कहीं शेर छपे थे

हास्य औ व्यंग की अजब गजब तस्वीर देखी


सुप्रभात की कहीं सुन्दर शब्दावलियाँ

पूजा अर्चना श्लोकों से सजी हुई कई गलियां

ज्योतिष औ सद्विचारों का कहीं बोलबाला था

लोगों के विचारों पर, विचारों की टिप्पड़ियाँ


कहीं कहीं तो मंच सजा था

बिना निमंत्रण के ही अच्छा खासा रंग जमा था

अनदेखे अनजाने थे फिर भी पहचाने पहचाने थे

कभी वाह वाह, कभी चुटकी,तो कभी हसीं ठठ्ठा था


राजनीति भी उसमे पीछे न थी

ये राजा का वचन,तो कहीं मनमोहन की चुप्पी की चर्चा थी

कांग्रेस का बखान करते हरीश तो बी जे पी के सुरेश थे
वकीलों व्यापारियों डाक्टरों नौक्रीपेशों कि भरमार थी

कहीं लिंक, कहीं टैग,तो कहीं बधाई कार्ड थे,
कहीं देशभक्ति तो कहीं घोटालों के दीदार थे
कहीं श्रद्धा, स्नेह, साहित्य और अखबार थे,
तो कहीं कही कुछ अनर्गल तस्वीर और वार्तालाप थे

जो भी है दिवार बहुत थी खुबसूरत सुन्दर

अकेलेपन को बांह पसार अपनाता मित्रमंडल

छुपी प्रतिभा निखारता सवांरता

कल रात देखा अजीब-ओ-गरीब मंज़र