दिल जो न कह सका
Wednesday, April 12, 2017
सवैया ... भोर भये जब ..
सवैया
भोर भये जब आँख खुली तो देखत हूँ हरसू अँधियारा
चादर तो अब भी रजनी तन उत्तर में दिखता ध्रुवतारा
ओस बिछी धरनी मनभावन ज्यों झरती झिर बारिश धारा
आज सुहावन देख धरा मन का उजला-उजला गलियारा
....आदर्शिनी 'दर्शी'.......
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