कुछ अपनों के संग ही मैंने दुनिया वालों को देख लिया
अपने ही हाथों से काटे कितनी बार पंख मैंने
अनसुलझे कुछ सुलझे भावों की लुकाछिपी भी देख लिया
नैन कटोरों में जल भर कर धूमिल तेरी छवि कई बार करी
हिलते डुलते सागर में भी तेरा रूप निराला देख लिया
पूरा अपना समझा जिसको उसको पल पल छिनते देखा
बारिश का कुछ पल को आकर झलक दिखाना देख लिया
कुछ संशय का भाव भी जागा कुछ ईर्ष्या के भाव जगे
प्रीत की बरखा देखी भावों में, सुनैनों का मद भी देख लिया
बहुत किया तुमने फिर भी तुम नारी मन को क्या जानो
दिल रखने को कुछ ही क्षण को तेरा पास बुलाना देख लिया
सच कहती है दुनिया सारी तुम नहीं किसी के लिए निष्ठुर
अल्पकाल में चन्दन सा मुझको लेप लगाना देख लिया
इसको भी सहो और समझो ये भी जीवन का एक पहलू है
ईश तुम्हारा ये खामोशा ईशारा भी देखो मैंने देख लिया