संसार में जितनी भी प्रकाशवान वस्तु अथवा पदार्थ हैं उसमे प्रकाश सूर्य से ही संभव है l पञ्च महाभूतों में अन्य चार महाभूत सूर्य के आश्रय के बिना संभव नहीं l
हो ‘सूर्य’ तुम ‘अर्यमान’ तुम ‘त्वष्टा’ तुम्ही ‘सविता’ तुम्ही
तुम ही तपे हो स्वर्ण से हो अग्नि की गुरुता
तुम्ही
तुम ही जगत की साधना निस दिन तुम्हारा गान है
इस विश्व का आलोक तुम रत्नों की तुममे खान है
हो ‘भानु’ तुम ‘कामद’ तुम्ही ‘दिनमणि’ ‘दिवाकर’ हो तुम्ही
‘रविकर-निकर’ उद्भट
तुम्ही ‘दिवनाथ’
‘गहवर’ हो तुम्ही
भूलोक का कण-कण सदा ‘दिनमान’ का
पूजन करे
गंधर्व ऋषि कंदर्प मुनि ‘शरकांत’ का
अर्चन करें
हो पुत्रवत्सल श्रेष्ठ बुद्धि सद्भाव धैर्य की
खान हो
दो दृष्टि का उजियार हो ब्रह्माण्ड का अभिमान
हो
अतिशय चमकते तेज से ही चक्र विष्णू का बना
है सत्य सात्विक तेज तप का आचरण तुमसे जना
‘आदित्य’ तुम
‘कुंतीपती’ अभिमान हो धुलते तुम्ही
‘मार्तण्ड’ ‘रवि’ ‘दिनकर’ तुम्ही
आपत्तियाँ हरते तुम्ही
करता सुबह जो प्रार्थना पाता अमित
वरदान है
संसार की हर वस्तु ज्योतिर्मय तुम्ही
से, ज्ञान है
हो ‘अर्क’ तुम ‘विवस्वान’ तुम
‘अधिपति’ ‘प्रभाकर’ हो तुम्ही
हो शीत का उपचार तुम विधु मखमली भी हो तुम्ही
हो ‘अंशुपति’ ‘वह्निनाथ’ तुम
‘धाता’ तुम्ही ‘पूषा’ तुम्ही
‘दिग्नाथ’ ‘पावकनाथ’ हो
तुम प्राणदा ऊषा तुम्ही
आता प्रलय जब-जब धरा पर नीर किरणें
सोखतीं
रचता नया संसार तब नव नव प्रजाती बोलती
हो ‘भास्कर’ की प्रार्थना तन मन मनस अरु भाव से
तो तेज तुम सा त्याग तुम सा मान ध्यान
प्रभाव से
....adarshini srivastva ....