Thursday, December 29, 2011

क्यों सजना यूँ व्यथित हुए

एकटक देख रहीं थीं बूँदें,
नेत्र भी उनके सजल हुए
छलके नयन लगे मन हरने
दिल जाने क्यूँ दो विकल  हुए
अभी कहाँ खोला था मन को
कैसे उसका विश्वास बनूँ
पलकों पर अधरों को रख दूँ
या कोमल आलिंग कसूँ
क्या कर दूँ जो चक्षु न भीगे
कैसे  पीड़ा मन की हर लूँ
कोई कसक तो होगी मन में
क्यूँ सजना यूँ व्यथित हुए

Wednesday, December 28, 2011

सबने समझा मै काठ रची

जीवन जैसे युग बीता
दिन-दिन जीवन सा लम्ब हुआ
कठपुतली सी इठलाई गई
डोरी में अंतरद्वंद्व हुआ
ऊँगली कि थिरकन पर थिरकी
ऊँगली ठिठकी काठी ठिठकी
समझा ना कोई उर कि पीड़ा
जल-जल कर कैसा रंग हुआ
सबने समझा मै काठ रची
लोगो का तो आनंद हुआ
मेरे कोरों से नीर बहे
मन उमड़-उमड़ के छंद हुआ
इंद्र धनुषी जो कुछ भी था
शनैः-शनैः वो धवल हुआ
डाली का महका सुमन-सुमन
मुरझा मुरझा बदरंग हुआ

कोहरा

हिम सा प्रसरित है रजत कोहरा
गगन धरा सब श्वेत हुई
पाती-पाती सच्चे मोती को
पाकर् के अभिभूत हुई
विधु कि किरणों से लिपटी उतरी
कुछ पल को खामोश रही
रवि किरण के साथ जा उडी
फिर से नभ में विलीन हुई

Sunday, December 11, 2011

नव वर्ष बधाई -----२०१२

खटमिट्ठी यादों कि ओढ़ चदरिया,
गतवर्ष कहे मै चला बजरिया,
घर-घर बन्दनवार सजाओ,
नववर्ष लगे मानो नई दुल्हनिया,
आँगन-आँगन में साज सजाओ,
साल भर बजती रहे ढूलकिया,
गीत हर्ष के गूँजे घर-घर
छमछम नाचे नर नागरिया

भजन

हे ईश्वर मै जिधर देखूँ,
काशी उस ओर नज़र आए ,
एक पाँव धरूं जिस ओर प्रभु,
वृन्दावन और निकट आए,
हाथ उठे किसी कर्म को जब,
तेरे चरणों को छू जाए,
धडकन-धडकन तू हर साँस-साँस,
बोलूं तो राम निकल जाए,
पसरी ध्वनियों में कर्ण धरूं
श्रवण तेरे नाम का हो जाए,
हे ईश्वर मै जिधर देखूँ
काशी उस ओर नज़र आए

तुम ज़हन में अभी भी रहते हो

तुम ज़हन में अभी भी रहते हो,
तुमको खुद छोड़ कर मै आई थी,

याद आता है तेरा गीत बहुत
जिसे तुम संग मै गुनगुनाई थी,

ज़मी का बिस्तर औ चाँदनी चादर
रात भी देख मुस्कुराई थी,

छूकर प्याली जो तेरे पास गई
तूने भी होठ से लगाईं थी

सामने फिर से देखकर तुमको
दिल में धड़कन कहाँ समाई थी,

दूर जाने कि चाह थी फिर भी
दिल तेरे पास छोड़ आई थी,