मेरा ध्यान उस ओर खिंचा
जब ठेले वाले ने दो गिलास पानी यूँ ही फेंका
मई की झुलसती धूप में तन और मस्तिष्क प्यासा था,
उस क्षण मैंने पानी की अहमियत को जाना था
आगे बड़ी, पूड़ियों से भरा डिब्बा किसी ने फेंका
एक जर्जर ढांचा उस ओर लपका
अखाद्य वह भोजन उस पल अमृत था
दो रूप थे पानी और भूख के
एक ओर तृप्त थे तो एक ओर क्षुब्द थे
अपने संग बूंद बूंद को तरसते लोग याद आने लगे
रोटी की होड़ में झगड़ते लोग याद आने लगे
आक्रोशित हुआ मन, उनपर जो अन्न जल सड़ाते है
जिससे कितने भूखे नंगे जीवन पाते है
कुछ दिन रखो उनको भी भूखा और प्यासा
जो औरो के अधिकार को अपनी सहूलियत पर मिटाते है
खुले नल और अन्न की बर्बादी देख आगे बढ जाते है
जान पड़ेगा महत्त्व तब भूखा और प्यास का
आँख खुले तब शायद जग जाए ज़मीर जनाब की
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