By Adarshini Srivastava · Tuesday, March 15, 2011
ह्रदय सागर को पात्र बना
निर्मल मन का नीर
पंचोली पट हो प्रतिबिंबित

नीली पुतली का नील
काली अलकों का रंग स्याह लें
रक्तिम अधरों की रीति
गौरपीत करों से घुलकर
मिश्रित होकर प्रीति
नैन गुलाबी डोर बने नेह पिचकारी की धार
इस प्रेममय रंगों को तू भरकर सबपर डाल
इसमें तन मन भीग बजेगा जो मधुरिम संगीत
होली के नूतन अवसर पर होगा वो सबका मीत
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