Friday, April 1, 2011

prashnjaal

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इन अंतहीन सवालों से जलता तपता जीवन अपना,

प्रश्नजाल तो होगा ही जब तक जग जीवन है अपना,

बढ़ना है रुकते,थकते, चलते मार्ग स्वयं ही पाना है

हाँ ! इष्ट मिले गर राहों में तो थाम हाथ बढ़ जाना है

सुगम मिलेगा वो पथ ही जो था कंटक से भरा हुआ

जो धुंध अँधेरी राहे थी, होगा मग प्रकाश से भरा हुआ

रुकने का तुम नाम न लो अभी बहुत चलना होगा

हाँ! ठहर रहो बस पल भर तुम, आकाश अभी छूना होगा

द्वारा--------- आदर्शिनी श्रीवास्तव

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