Friday, April 1, 2011

बूंद

हरित पल्लव पर थिरक थिरक ,

बूंद थी ओस की वह निर्मल ,

प्रथम रश्मि ने डाली जब

अपनी स्निग्ध किरण उस पर І

झिलमिल तारो सी चमक कभी

ढलमल तितली का पंख कभी

कभी कांच का टुकडा वो

खद्योत विद्योत सी चमक कभी І

श:नै श:नै जब धूप तपी

लघु से लघुतम हो चली वही

समा गयी वही हरियाली में

आश्रय पत्ती से लिपट कही І

फिर ठिठुर भोर में जागने ...

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