हरित पल्लव पर थिरक थिरक ,
बूंद थी ओस की वह निर्मल ,
प्रथम रश्मि ने डाली जब
अपनी स्निग्ध किरण उस पर І
झिलमिल तारो सी चमक कभी
ढलमल तितली का पंख कभी
कभी कांच का टुकडा वो
खद्योत विद्योत सी चमक कभी І
श:नै श:नै जब धूप तपी
लघु से लघुतम हो चली वही
समा गयी वही हरियाली में
आश्रय पत्ती से लिपट कही І
फिर ठिठुर भोर में जागने ...
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