Friday, April 1, 2011

बसंत पंचमी में माँ सरस्वती को नमन

हे माँ मै हू अंश तेरा,

तू सृजनकार है इस जग की मुझको भी सृजना कहलाया,

मातृत्व भाव जगा मन में माँ का दर्ज़ा है दिलवाया

तू भी जननी, मै भी जननी

किन्तु मै याचक हू, तू परमशक्ति


तुने दी है ज्ञान, मान, सम्मान,शक्ति

और दिए है शब्द

जिन्हें पिरो अपने मन को, मैंने तुम तक पहुंचाया

हे माँ मै हू अंश तेरा

तू भी जननी, मै भी जननी

तू सुरसरि है मात्र नीर


सच बोलूँ तो माँ नि:स्वार्थ नहीं ये प्रेम मेरा,

कठोर समय में तू ही तो आकर थामेगी हाथ मेरा,

निठुर विगत स्थितियों से रक्षा कर तुने बड़ा किया ,

प्रतिकूल काल से टकराऊं इस योग्य तुने बना दिया,

तुझसे अभयरस पा जग में खुद को स्थापित मै कर पाई,

विशवास करो मेरा सच माँ, क्या मै तुझे भुला पाई?

हे माँ मै हू अंश तेरा,

तू भी जननी, मै भी जननी

तू कल्पद्रुम है मात्र विटप,


इस अकिंचन ने तेरा, पुन: आह्वान किया है माँ,

आत्मसंशय से भरी हूँ मै, क्या कुछ कलुष किया है? माँ

शुष्क शब्द क्यों आज मेरे, स्वरतंत्र बुझे-बुझे से है,

विरक्त हुई तू क्यों मुझसे, पीयूष सलिल बरसा दे माँ

हे माँ मै हू अंश तेरा

तू भी जननी, मै भी जननी

तू आभा मै अभिलाषी हूँ

by------adarshini srivastava

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