Thursday, October 17, 2013

महत्त्व बालिका का

कन्या भ्रूण बचाओ पर बहुत सी संस्थाएं काम कर रही हैं, भ्रूण संरक्षण संस्थाओं की ओर से और इस विषय को लेकर बहुत से कविसम्मेलन भी होते रहते हैं लेकिन क्या सिर्फ बेटी को जन्म देने के प्रोत्साहन से ही अपना कार्य पूर्ण हो रहा है ? देश का जो हाल है उससे क्या कन्याओं का औसत और कम नहीं हो रहा? 'कन्या भ्रूण संरक्षण संस्थाओं' को अपना नाम बदल कर 'बालिका सुरक्षा संस्थान' रख लेना चाहिए ......लेकिन इतना बड़ा उत्तरदायित्व निभाने की हिम्मत कौन कर सकता है ?

........आज के सन्दर्भ में बेटी शब्द बहुत संकुचित हो गया है दायरा कुछ सीमित सा लगता है अपने घर में रहने वाले दूसरी प्रजाति के लोगों से भी स्नेह हो जाता है फिर बेटी की तो बात ही क्या ..... बेटी के स्थान पर लड़की ,बालिका, कन्या ज्यादा विस्तृत है

........सच पुछो तो "सेव गर्ल चाइल्ड" कि जरुरत ही न पड़े यदि घर-घर में स्त्री जाति के हर रिश्ते को महत्वपूर्ण मान लिया जाए खासतौर से बहू को ......जब बालिका, युवती, महिला का महत्व स्वीकार कर लिया जायेगा तो बेटियां तो खुद ही जन्म लेने लगेंगी .......

डॉ मित्रेश गुप्त जी कि कुछ पंक्तियाँ ध्यान में आ रही है

लडकी है सौगात ईश की वह घर की फुलवारी है 
फूलों की है गंध सुगंध वह नव चन्दन की क्यारी है 
योग्य बनाना, नहीं लादना कभी उसे परिधान से 
विदा उसे करना है धन से नहीं, स्नेह सम्मान से 
...................................
गर अपने शब्दों में लड़कियों को कहूँ तो ये कहना है सन्देश रूप में 

दिल की धड़कन को जरा गौर से सुनना होगा 
आते जाते हुए ठहराओ को गुनना होगा 
रेल जीवन की तभी अपने मुकाबिल होगी 
साँस लेने का हुनर खुद हमें चुनना होगा 
............आदर्शिनी....

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