Thursday, October 17, 2013

अभी बारिश पर ...एक चिंतन

खुले आकाश में कुछ ही देर में कहीं सफ़ेद तो कहीं सिलेटी बादलों ने नभ को कांतिहीन कर दिया I लगा हवा का झोंका मात्र आशान्वित कर इन बादलों को उड़ा ले जायेगा, किन्तु बूँदा-बाँदी के साथ उसका क्रम तेज वर्षा में परिवर्तित हो गया I हम दोनों अपना काम छोड़ मन्त्र-मुग्ध से उस वर्षा को निहारने लगे I 
वह कह उठी नेहा की तबियत ठीक नहीं, आँगन में कपड़े भीग गए होंगे वह टाइफाइड से कमजोर हो गई है कैसे उठाएगी, मैंने भी उसकी इन विषम परिस्थितियों के चिंतन में व्यर्थ की सान्त्वना दे अपना उत्तरदायित्व निभाया फिर १५-२० मिनट की तेज बारिश की सुन्दरता में अपने को डुबा दिया I

मन जाने कहाँ-कहाँ कुलाचें मारने लगा, कभी आसमान देखते कभी मध्य तो कभी तल I ध्यान टूटा तो सोचा निशा से पूछूँ कि उसके मन में अब तक क्या चला बारिश को देख, किन्तु लोगों के घर में काम कर दो जून का जुगाड़ कर संघर्षमय जीवन जीने वाले उनका कल्पनालोक क्या होगा सोच खामोश रही वैसे भी वह अपने घर के प्रति चिता अभी ज़ाहिर कर चुकी थी I तभी वह मासूमियत से बोल पड़ी “भगवान के घर भी कितना पानी होगा जो वह पूरी दुनियां में बरसाता है “ मेरी झिझक का उत्तर स्वयं ही मिल गया मुझे ...मैं मुस्करा दी I 
सोचने लगी ठीक ही तो कहा उसने ये बीच के विषय ...समुद्र, गरम हवा, पहाड़ इन सब का ज्ञान तो आत्मसंतुष्टि और छलावा मात्र है I कुछ ऐसा है जो अब भी सहस्य है, जो इन सब दृष्यमान पदार्थों का उत्पादक है I जिस तथ्य को निशा जैसे व्यक्ति पल में भाँप लेते हैं और हम जीवन का कितना समय उसे समझने में व्यर्थ करते हैं I 
............अभी की बारिश पर .....

No comments:

Post a Comment