Thursday, October 17, 2013

अपना देश

रक्त से सनी हुई धरा नहीं चाहिए
धुएं के गुबार का आसमान नहीं चाहिए
तड़तडाती गोलोयों की गूँज न सुनाई दे
गोले बारूदों का अब हमें सामान नहीं चाहिए
देखने में श्वेत हों पर लाल हो टोपियाँ
ऐसे हिंसक के सर पर ताज नहीं चाहिए
कोटि जन भूखे रहें भरी रहें तिजोरियां
ऐसे निर्दय, निर्मम का आराम नहीं चाहिए
डर है तुम्हे किस बात का देते नहीं क्यों फांसियां
तुम भी इनमे साने नहीं अक्सर लगती है बाजियां
बड़े-बड़े उद्दंडी है जो जेल में आराम से
इन दुष्टों के जीवन का अंजाम हमें चाहिए .........

पुष्प के मकरंद सी धरा हमें चाहिए
आसमां में प्रेम का गुलाल हमें चाहिए
आँगन में सबके सदा गूंजा करे किलकारियां
निर्भीक हँसता मुस्कराता परिवार हमें चाहिए
गांधी जाकिर इंदिरा सा नेतृत्वगर मिले हमें
खादी जीवन खुद जी कर फिर उपदेश जो करें हमें
एक निवाला दे आपको फिर स्वंय को वे एक दे
कर में हिस्सेदारों के ये पतवार हमें चाहिए
ऐसे संतों के सर पर अब भार हमें चाहिए ...................
......आदर्शिनी.....

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