Tuesday, September 13, 2016

लेख ---चन्दन चर्चित छवि तेरी .....क्या खूब हिंदी हो मेरी


हिंदी भारत की ही नहीं विश्व की सबसे अधिक समृद्ध शास्त्रीय और वैज्ञानिक भाषा है l जो भाषा की ध्वनियों को जैसे का तैसे रूप में प्रस्तुत करती है l देवनागरी लिपि अपेक्षा संसार की अधिकांश लिपियाँ अत्यधिक त्रुटिपूर्ण हैं l इसकी तरह संसार की कोई भी लिपि ध्वन्यात्मक और वैज्ञानिक नहीं है और इसको देश-विदेश के सभी विद्वानों ने एकमत हो मुक्त कंठ से स्वीकार किया है l स्वर और व्यंजन का बहुत स्पष्ट अलग-अलग विभाजन है l स्वरों में भी मूल स्वर पहले और संयुक्त स्वर बाद में बहुत स्पष्टता से आते हैं l इसका उच्चारण स्थान तालू, जिव्हा, कंठ आदि बहुत हिसाब से पूर्ण वैज्ञानिकता के साथ हैं l उच्चारण अंगों को ध्यान में रख कर बहुत साधना के साथ चिंतन मनन और विश्लेषण के इसका निर्माण हुआ है l
आज दुनियाँ के समस्त देशों में भारतीय रह रहे हैं l दुनियाँ के लगभग डेढ़ सौ देशों देशों में ढाई करोड़ भारतीय रह रहे हैं और चालीस देशों के ६०० विश्वविद्यालयों और विद्यालयों में हिंदी पढाई जा रही है l विदेशों में हिंदी में पत्र-पत्रिकाएँ छप रही हैं l अमेरिका की विश्वा और मारीशस की आर्यवीर और जागृति प्रसिद्द पत्रिकाएँ हैं l ये हर्ष का विषय है की भारत ही एक ऐसा देश है जिसकी पाँच भाषाएँ विश्व की सोलह प्रमुख भाषाओँ में शामिल हैं l

संयुक्तराष्ट्र संध में शामिल होने के भारत की केवल खड़ी बोली के हिसाब से सर्वे किया गया जिससे अभी उसका स्थान संयुक्तराष्ट्र संघ के लिए निर्धारी नहीं हो पाया l पर ये क्यों नहीं हो पाया ये विचारणीय प्रश्न है lअगर देवनागरी से उद्धृत बोलियों मराठी, राजस्थानी, नेपाली, पंजाबी जैसी तमाम बोलियों को मिला कर गणना की जाए तो हिंदी भाषा विश्व में प्रथम स्थान पर होगी l इससे संयुक्त राष्ट्र संघ में उसे शामिल हो जाना चाहिए l इसके अतिरिक्त जनसंख्या की दृष्टि से भारत दूसरे नंबर का देश है जिसकी आबादी लगभग १२५ करोड़ है जो दुनियाँ भर के अंग्रेजी भाषी से अधिक हैं l 

भारतीय आर्य भाषाओँ की सभी भाषाओँ का अपने क्षेत्र में विशेष स्थान हैं किन्तु हिंदी भाषा का एक विशिष्ठ और महत्वपूर्ण स्थान है l अवधि ब्रज बुन्देली डोंगरी कन्नड़ आदि अलग-अलग प्रदेशों में अपने स्थान के कारण प्रसिद्द हैं l इन बोलियों में खड़ीं बोली का अलग स्थान इसलिए है क्योंकि ये किसी विशेष स्थान से सम्बंधित नहीं है l शायद ये खरी से इसे खड़ी कहा जाने लगा है l खरी मतलब शुद्ध, प्राकृत, विशुद्ध l भारत में खड़ी बोली का क्षेत्र बहुत विस्तृत है पश्चिम उत्तर और पूरब में इसने अपनी शुद्धता के बल पर अपना स्थान बनाया है l वर्तमान समस्त साहित्य का मूलाधार खड़ी बोली है l अब इस खड़ी बोली में उर्दू फारसी का समवेश होने लगा है l यही खड़ी बोली भारत की राजभाषा, राष्ट्रभाषा और साहित्य  भाषा है l साहित्य में जो स्थान इसका है भारत की अन्य भाषाओँ का नहीं l  
     
इंटरनेट की दुनियाँ में हिंदी को नई उड़ान दी है l जहाँ इंटरनेट पर पहले अंग्रेजी का वर्चस्व था अब हिंदी का भी महत्वपूर्ण स्थान है l हिंदी में मेडिकल और इंजीनियरिग जैसी उच्च शिक्षायें भी हिंदी होने में होने लगीं हैं l सरकार प्रदेशीय हिंदी माध्यम के विद्यालयों में उसकी स्थिति सुधरने में प्रयासरत है l दुनियाँ की अधिक से अधिक भाषाओँ का ज्ञान और यथा समय अनुकरण करना बुद्धिजीवियों का गुण है उन सबके प्रति आदरभाव और ज्ञान के साथ ही हमें हिंदी को समर्पण भाव से अपना कर चलना है l अतः हिंदी की स्थिति किसी प्रकार से शोचनीय नहीं है l 

जहाँ तक वर्तमान साहित्य की बात है लेखन का स्तर गिरता ही जा रहा है हलाकि इंटरनेट पर कुछ विद्वान हिंदी की पुरानी गरिमा बनाये रखने के लिए परिश्रम के साथ प्रयासरत हैं पर उसका फायदा तो वही उठा पायेगा जो सीखना चाहेगा l आजकल लोग त्वरित प्रसिद्धि तो चाहते हैं पर अध्ययनशील नहीं हैं l ये सच है की साहित्य या काव्य ऐसा हो जो जन-ग्राह्य हो शब्दों का चयन बहुत समझदारी से और सुन्दरता से हो किन्तु ऐसा भी न हो कि वो इतना सरल हो जाये की उसका कुछ स्तर ही न रहे l हिंदी संस्कृत की तनया है और हिंदी, साहित्य सृजन में पूर्णतया अपनी माता का तिरस्कार कर दे ये भी उचित नहीं l हमारे लिए कोई चीज़ तभी तक कठिन होती है जब तक वो हमें उसका ज्ञान नहीं होता l हमारी हिंदी के सहस्त्रों शब्दों के महा शब्दकोश में हजारों शब्द काल कोठरी में पड़ी रूपसी की तरह बिना बाहर आये छटपटा छटपटा कर दम न तोड़ दे l लोचन, अक्षि, चक्षु, नैन, दृग जैसे सुन्दर शब्द हमने प्रयोग किये हैं इसीलिए वो सरल लगने लगे हैं l नाव का बोहित शब्द कितना खुबसूरत है पर उसका प्रयोग हम क्यों नहीं करते ? हिंदी के तमाम शब्द बहुत खूबसूरती के साथ शब्दकोश से बाहर लाना भी हमारा कर्तव्य है l एक-एक शब्द के दसियों दसियों पर्यायवाची हैं जिन्हें हम मात्राओं के हिसाब से प्रयोग कर सकते हैं l 
    
 अन्य भाषाओँ के ज्ञान और प्रयोग के साथ हम घर के बच्चों के समक्ष बोलचाल की भाषा हिंदी रखें तो पीढ़ी दर पीढ़ी हिंदी की सौगात हम अगली पीढ़ी को  अनायास ही भेंट करते रहेंगे इससे अन्य लोग भी सुनकर प्रेरित होंगे नई पीढ़ी में अपनी राष्ट्रभाषा के प्रति सम्मान बढेगा और हिंदी नित नई उचाईयों को हासिल करती रहेगी l

.....आदर्शिनी श्रीवास्तव ... मेरठ 

1 comment:

  1. बहुत सारगर्भित लेख है बधाई

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