Monday, September 12, 2011

नहीं मै कह नहीं सकती तुझे मै प्यार करती हूँ

तुझे गर देख लू कुछ पल, तुझ से ही दिन गुज़रता है,
घंटों कैसे गुजरते है पता कुछ भी न चलता है,
होती हूँ मैं सबके संग मगर फिरभी अकेली हूँ
पूछते है सभी मुझसे कहाँ तेरा मन भटकता है,

मुश्किल में बहुत हूँ मैं,सही हूँ या गलत मै हूँ,
कदम मैं इक बढाती हूँ पीछे फिर लौट आती हूँ,
बढाया है तुम्ही ने हौसला,तेरे सर ही मढती हूँ,
सही हूँ गर तो तेरी हूँ,बुरी हूँ गर तो तेरी हूँ,

तेरे उन्मुक्त प्रश्नों से ऊलझन में पड़ मै जाती हूँ,
समझते क्यू नहीं तुम भी हया में सब छुपाती हूँ,
कैसे खोल दूँ मन को नहीं,ये गुण न मेरा है,
पुरुष हो तुम,कह दो तूम,मौन स्वीकार मेरा है,

मैं राधा ही भली तेरी जामुनी बन न पाऊँगी,
भामा संग तान तुम छेड़ो,मै ब्रज में गुनगुनाऊँगी,
कृष्णा की बाँसुरी पर तो,रुक्मणि अधिकार तेरा है,
गोकुल में मिल गया जो वही जीवन अब मेरा है,

नहीं मै कह नहीं सकती,तुझे मै प्यार करती हूँ,
तेरे भीतर के ईश्वर को नमन सौ बार करती हूँ,
तुझसे ही मेरी रचना सजी आभार करती हूँ,
स्वयं के रोम रोम में तेरा आभास करती हूँ

2 comments:

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  2. tumhare saath har kshan ko maine tyohaar mana hai
    tumhe apna khuda samjha tumhe sansaar maana hai
    ye duniyan kyon na padhti hai hriday ke moun ki bhasha .....zamaane ne milan ko hi hamesha pyar mana ha ....adhar par hi thahar jaate ye jo shabd bebas hain ..magar dil ke bayano ko nayan to bol hi dete ...bhale tum mat kaho mujhse ki mujhse pyaar karti ho .....magar saare fasaane ko nayan to khol hi dete ..........wese geet bahut achchha hai

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