Thursday, October 17, 2013

पक्षपात न हो


संस्कारों में भेद की पक्षधर मैं बिलकुल नहीं हूँ ...जो गलत है वो दोनों वर्ग लिए गलत है कोई चीज़ एक के लिए हव्वा और एक के लिए क्षम्य या कम क्यों? एक बार कल्पना कर के अवश्य समझे....सम्मानित है वह घर जहाँ हर रिश्तों के प्रति अलग-अलग कर्तव्यों को तो समझाया जाता हैं लेकिन संस्कारों की सीख समग्र रूप से दी जाती है उसमे बेटा बेटी का भेद नहीं होता ...अति प्राचीन काल की आत्मतुष्टि कि विचारधारा से बाहर आकर सोचना हो

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