Sunday, December 30, 2012


                                        प्रदूषण तांडव  
सर्वविदित है की दूषित पर्यावरण का प्रभाव हमारी शारीरिक और मानसिक विकास को अत्यंत क्षति पहुंचा रहा हैI
ये हमारे इसी जीवन को प्रभावित नहीं कर रहा बल्कि, यदि इसको बल पूर्वक रोका न गया तो इसके दुष्प्रभाव से आने वाली अनेक पीढ़ियाँ भी प्रभावित होंगीं आजकल के इस अर्थयुगीन और आराम पसंद युग में सुविधाओं का त्वरित लाभ उठा भविष्य की आशंकाओं को लोग अनदेखा कर रहे हैं प्लास्टिक, औद्योगिक उपकरण, कर्णविदीर्ण संगीत, गाड़ियों का कोलाहल, विषैली गैसें, ख़ुशी के इज़हार हेतु बार-बार प्रयोग होते पटाखे ओजोन परत को नुक्सान पहुंचा वायु मंडल कि शुद्धता का भक्षण कर रहे हैं I
 प्लास्टिक की थैलियों पर तो सरकार लगाम लगाने का प्रयास करती दिख रही है किन्ही-किन्ही शहरों और प्रदेशों में पोलिथिन पर प्रतिबन्ध लगाया भी गया है किन्तु ढील मिलते ही फिर इसका प्रयोग धडल्ले से शुरू हो जाता है  कभी कभी तो सरकार की मंशा पर भी संदेह होता है कि सिर्फ पोलीथिन पर प्रतिबन्ध लगाने से क्या होगा यदि अन्य यूज़ एंड थ्रो सामग्रियां यूँ ही उपयोग होती रहीं, भोजन की पैक थालियाँ, किसी भी जलसे में थर्मोकोल, प्लास्टिक के गिलास, चम्मच, प्लेट, पानी की बोतल के प्रयोग देखे जा रहें हैं. क्या इसका उत्पादन न हो इसपर ध्यान देने की जरूरत सरकार नहीं समझ रही ? या इसका उपयोग न हो इस पर अलग से कानून बनेगा? इसको जलाने से वायु में कार्बन जैसे हानिकारक गैस का मिश्रण होगा. यदि भूमि में दबाया गया तो पृथ्वी की ऑक्सीजन को बाधित कर जमीन बंजर करेगा और यदि यूँ ही पड़ा रहा तो गंदगी, बीमारी और असभ्यता को न्योता देगा और वर्षाकाल में पानी में मिल नदियों के जल प्रवाह को बाधित और जल प्रदूषण को पैदा करेगा
भारत की ऊंचाई पर स्थिति श्रीनगर जैसे मनमोहक शहर में कृष्णा ढाबा में भोजन करने का दुर्भाग्य प्राप्त हुआ जिसमे इतनी अधिक संख्या में ग्राहक आते है की उपभोक्ता को खाने की थाली के लिए घंटों घंटो इंतजार करना पड़ता है और मई जून में हजारों की तादात में लोग प्रतिदिन भोजन ग्रहण करते है किन्तु वहां इसी थर्मोकोल और प्लास्टिक के डिस्पोजेबल क्रोकरी का ही उपयोग होता है ये देख कर मन काँप गया भोजन से जी उचाट हो गया जब इस और ध्यान गया की आखिर दोपहर और रात का इतना कचड़ा कहाँ जाता होगा पहाड़ी जल प्रपातो ,नदियों में बह वो मैदानी भागों को गन्दला करता जा रहा होगा. पत्थरों के मध्य फंस कितनी नदियों का मार्ग अवरुद्ध कर रहा होगा. दिशा भ्रमित हुई नदियाँ पूरे-पूरे गाँव को निगल लेने की ताक में होंगीं ये जल प्रदूषण क्या प्रलय का सीधा साधा निमंत्रण न होगा ?
जल में निहित होते जा रहे तमाम अवांछनीय कारक और पदार्थ मुख्यतः क्लोराइड सोडियम, बाई कार्बोनेट, मैग्नीशियम, पोटेशियम, अमोनिया कार्बन मोनोऑक्साइड और औद्योगिक अवशिष्ट जल को प्रभवित करते जा रहे हैं और वायु, जल, ध्वनि, मृदा, नाभिकी सभी प्रदुषण वातावरणीय जल के साथ मिल अम्लीय वर्षा कर मानव जीवन को प्रभावित कर रहे हैं.
कोशिश करें पोलीथिन के स्थान पर कपडे या कागज के झोले का इस्तेमाल करें, अनावश्यक सामानों का क्रय न करें, पटाखों के प्रयोग से बचें, प्लास्टिक त्याग कांच या धातुओं के बर्तन का उपयोग करें, मोबाइल कंप्यूटर का उपयोग जरूरत के लिए करें, गाड़ियों का कम प्रयोग करें, धर्म के नाम पर नदियों में अघुलनशील पदार्थों को प्रवाहित न करें, प्रकृति जीवन दायिनी है इन छोटे छोटे योगदान से हम प्रकृति के ऋण से कुछ तो उबर ही सकते हैं              
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Saturday, December 29, 2012

प्यारी तमाम बेटियों को आदर्शिनी माँ का एक सन्देश
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1-गर्व करो नारी हो तुम, सद्विचार है तुमसा कहाँ?
गिनती में नर से कम हो फिर भी सर झुकाता है जहां
पथ कंटीले पार कर मंजिल तलक पहुंची हो तुम
तुम सही,.. जालिम हैं वो, जो मिटा रहे तेरा निशां

2-बढ़ चलें है गर कदम डर से इन्हें न रोकना
आँख अपनी खोल पर, वातावरण को तोलना
जो धुंध गहरी लग रही छंट जायेगी ये एक दिन
हर कदम रखने से पहले बस पड़ेगा फूंकना 


जब पूरे देश की कन्याये बस में ६ लड़कों द्वारा हैवानियत का शिकार हुई लड़की की दुर्दशा देख 
अपनी सुरक्षा के प्रति चिंतित और सहमी ही थी उस समय उनके हौसले को बढाने और उन्हें कर्मपथ 
पर बढ़ने की प्रेरणा देने हेतु ये रचना की
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3-साथ पढना साथ लिखना साथ होती मस्तियाँ 
प्रश्न ये झुलसा रहा क्यों बढ़ रहीं हैं खाईयाँ 
इक दुसरे के मित्र हो समझो मनो के भाव को 
तकरार होती है सभी में होती कहाँ हैं लड़ाईयां 

4...सौगंध ले लो आज से रक्षा का दृणसंकल्प ले लो 
साथ हँसते खेलते बिताये तुम सारे वर्ष ले लो 
बद्नज़र जो भी उठे, वो तुमसे होकर ही बढे 
मन से अगर कोई हाथ थामे हाथ में तुम हाथ ले लो 

३ और ४ नंबर के दो मुक्तक उन सह शिक्षा में पढने वाले सहपाठियों के नाम जो स्कूल में रह हर 
कार्यक्रम में साथ-साथ भागीदारी करते है और मित्र की तरह रहते हैं 
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5- तुम पर आज कोई भी नहीं इलज़ाम रखती हूँ
बने गमख्वार हो मेरे बड़ा एहसान रखती हूँ
अलख तुमने जलाई है उसे तुम बार कर रखना
जाते-जाते हुए हांथों तेरे काम रखती हूँ
 

 सिंहापुर पुर से ३० तारिख की रात में लौटा पीड़ित कन्या का पार्थिव शरीर अपने पीछे लोगों को एक जिम्मेदारी सौप गया ...तब ये ५वामुक्तक 
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इस अन्नत नभ के पीछे भी
कुछ तो हलचल जारी है,
चादर नीरवता की ताने
पर शोर भयंकर भारी है,
शांत दिख रहे सागर का
अंतस भी घायल है समझो,
स्थिर धरनी के अंतर में भी
एक बवंडर भारी है,
जीवन मृत्यु का खेल अजब
इसको पाना उसको खोना,
जीवित सा दिखने वाला कण
क्या निश्चित है जीवित होना?
जिसके दम से स्पंदन है
जब वह ही साँसों को चाहे,
तब होगा सब स्वीकार सहज
फिर क्या पाना और क्या खोना,
सभी बच्चों को क्रिसमस की बहुत बहुत बधाई
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जिंगल बेल की टुनटुन धुन पर कान लगाओ न...
पिछले दुख को भूल के थोडा सा मुस्काओ न.....
जी करता सेंटा बन जाऊं
ख़ुशी के तोहफे खूब लुटाऊं
गीली आँखों को तुम अपनी
आज सुखाओ न... थोडा मुस्काओ न.....
देखो सुबह है आज रुपहली
कोहरे से झांके किरण सुनहरी
तू हँसे हम ख़ुशी से रो दें
मुझे रुलाओ न... थोडा मुस्काओ न....
मोज़े में खुशियाँ तुम ले लो
झोली में अड़चन तुम दे दो
फिर भी कोई उलझन हो तो
मन में कोई हलचल हो तो
आँख मूँद "दर्शी" कह करके इधर उड़ाओ न...
जिंगल बेल की टुनटुन धुन पर कान लगाओ न...
पिछले दुःख को भूल के थोडा सा मुस्काओ न...
..........आदर्शिनी "दर्शी"........

मेरी इस रचना में उदासी का कारण ...........मेरी ये रचना उस घटना के बाद की है जब देश की एक बेटी दरिंदों का शिकार हो जिंदगी और मौत के बीच झूल रही थी और पूरा देश उसको न्याय के लिए गुहार कर रहाथा
......पूरा किन्तु अधुरा सा..........

मानस पर तेरा छा जाना
फिर ढल सपनों में आ जाना
श्यामल रैना में आभा बन
बहुरंगे चित्र सजा जाना

प्रमुदित बैठे कल-कल तट पर
प्रेम प्रबल उर्मिल मन भर
तीरे-तीरे चलना हाथ थाम
हर ताप ह्रदय का छंट जाना
मानस पर तेरा छा जाना

उलीच दिया उर गागर सब
कम्पित-कम्पित द्वि अधरों से
भ्रमर चितेरे नयनों में फिर
दिवास्वप्न दिखला जाना
मानस पर तेरा छा जाना
फिर ढल सपनों में आ जाना