प्रदूषण तांडव
सर्वविदित है की दूषित पर्यावरण का प्रभाव हमारी शारीरिक और मानसिक विकास को अत्यंत क्षति पहुंचा रहा हैI
सर्वविदित है की दूषित पर्यावरण का प्रभाव हमारी शारीरिक और मानसिक विकास को अत्यंत क्षति पहुंचा रहा हैI
ये हमारे इसी जीवन को प्रभावित नहीं कर रहा बल्कि,
यदि इसको बल पूर्वक रोका न गया तो इसके दुष्प्रभाव से आने वाली अनेक पीढ़ियाँ भी प्रभावित होंगीं आजकल के इस अर्थयुगीन और आराम पसंद युग में
सुविधाओं का त्वरित लाभ उठा भविष्य की आशंकाओं को लोग अनदेखा कर रहे हैं प्लास्टिक,
औद्योगिक उपकरण, कर्णविदीर्ण संगीत, गाड़ियों का कोलाहल, विषैली गैसें, ख़ुशी के
इज़हार हेतु बार-बार प्रयोग होते पटाखे ओजोन परत को नुक्सान पहुंचा वायु मंडल कि
शुद्धता का भक्षण कर रहे हैं I
प्लास्टिक की थैलियों पर तो
सरकार लगाम लगाने का प्रयास करती दिख रही है किन्ही-किन्ही शहरों और प्रदेशों में
पोलिथिन पर प्रतिबन्ध लगाया भी गया है किन्तु ढील मिलते ही फिर इसका प्रयोग धडल्ले
से शुरू हो जाता है कभी कभी तो सरकार की
मंशा पर भी संदेह होता है कि सिर्फ पोलीथिन पर प्रतिबन्ध लगाने से क्या होगा यदि
अन्य यूज़ एंड थ्रो सामग्रियां यूँ ही उपयोग होती रहीं, भोजन की पैक थालियाँ, किसी
भी जलसे में थर्मोकोल, प्लास्टिक के गिलास, चम्मच, प्लेट, पानी की बोतल के प्रयोग
देखे जा रहें हैं. क्या इसका उत्पादन न हो इसपर ध्यान देने की जरूरत सरकार नहीं
समझ रही ? या इसका उपयोग न हो इस पर अलग से कानून बनेगा? इसको जलाने से वायु में
कार्बन जैसे हानिकारक गैस का मिश्रण होगा. यदि भूमि में दबाया गया तो पृथ्वी की
ऑक्सीजन को बाधित कर जमीन बंजर करेगा और यदि यूँ ही पड़ा रहा तो गंदगी, बीमारी और असभ्यता
को न्योता देगा और वर्षाकाल में पानी में मिल नदियों के जल प्रवाह को बाधित और जल
प्रदूषण को पैदा करेगा
भारत की ऊंचाई पर स्थिति श्रीनगर जैसे मनमोहक शहर में कृष्णा ढाबा में
भोजन करने का दुर्भाग्य प्राप्त हुआ जिसमे इतनी अधिक संख्या में ग्राहक आते है की
उपभोक्ता को खाने की थाली के लिए घंटों घंटो इंतजार करना पड़ता है और मई जून में
हजारों की तादात में लोग प्रतिदिन भोजन ग्रहण करते है किन्तु वहां इसी थर्मोकोल और
प्लास्टिक के डिस्पोजेबल क्रोकरी का ही उपयोग होता है ये देख कर मन काँप गया भोजन
से जी उचाट हो गया जब इस और ध्यान गया की आखिर दोपहर और रात का इतना कचड़ा कहाँ
जाता होगा पहाड़ी जल प्रपातो ,नदियों में बह वो मैदानी भागों को गन्दला करता जा रहा
होगा. पत्थरों के मध्य फंस कितनी नदियों का मार्ग अवरुद्ध कर रहा होगा. दिशा
भ्रमित हुई नदियाँ पूरे-पूरे गाँव को निगल लेने की ताक में होंगीं ये जल प्रदूषण
क्या प्रलय का सीधा साधा निमंत्रण न होगा ?
जल में निहित होते जा रहे तमाम अवांछनीय कारक और पदार्थ मुख्यतः
क्लोराइड सोडियम, बाई कार्बोनेट, मैग्नीशियम, पोटेशियम, अमोनिया कार्बन
मोनोऑक्साइड और औद्योगिक अवशिष्ट जल को प्रभवित करते जा रहे हैं और वायु, जल, ध्वनि,
मृदा, नाभिकी सभी प्रदुषण वातावरणीय जल के साथ मिल अम्लीय वर्षा कर मानव जीवन को
प्रभावित कर रहे हैं.
कोशिश करें पोलीथिन के स्थान पर कपडे या कागज के झोले का इस्तेमाल
करें, अनावश्यक सामानों का क्रय न करें, पटाखों के प्रयोग से बचें, प्लास्टिक
त्याग कांच या धातुओं के बर्तन का उपयोग करें, मोबाइल कंप्यूटर का उपयोग जरूरत के
लिए करें, गाड़ियों का कम प्रयोग करें, धर्म के नाम पर नदियों में अघुलनशील
पदार्थों को प्रवाहित न करें, प्रकृति जीवन दायिनी है इन छोटे छोटे योगदान से हम
प्रकृति के ऋण से कुछ तो उबर ही सकते हैं
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