हे बुद्धिदा भागीरथी तुम ज्ञानदा तेजोमयी
निर्मल सरल सुरसरि सहज तुम प्राणदा आभामयी
किसमें भला सामर्थ्य थी जो वेग अविरल धारता
बस शम्भु शंकर ईश ही समर्थ थे गंगे अहो
गौरांगिनी गंगा पतित पावन कुमारी सुंदरी
मैनावती-हिमगिरि सुता शोभावती तुम जलपरी
होता प्रखर मति वो मनुज जो नित्य जल सेवन करे
है आस्था विशवास तुम पर जाह्नवी गंगे अहो
सरिता सलिल कल-कल कलिल धुन गुंजरित करुणामयी
उतरी भयंकर वेग से अति शुभ्र हो शुचितामयी
देवर्षि गण वसु यक्ष नग अभिभूत से देखें तुम्हे
नभ से हुई मकरंद वर्षा अक्षरी गंगे अहो
उद्धारिणी हर मानवों की पाप से हो तारती
ढलती हुई गोमुख शिखर से केहरी हो सोहती
वर्षों भगीरथ ने तपस्या की तभी दर्शन हुआ
धरती हुई तब अम्बुमय, भावान्जली गंगे अहो
हिमकर सरीखी स्वच्छ निर्मल श्वेत नीर तरंगिनी
औषधि तुम्हारे वारि में हे सुरधुनी हे मधुवनी
अतुलित तुम्हारी श्रेष्ठता है कुछ कहा ना जा
सके
शत-शत नमन आभार हो, हे सुर नदी गंगे अहो
... आदर्शिनी श्रीवास्तव ....