है तेरी कृपा माँ भारती,
उर को किन्तु भाता नहीं
जो उकेरती है लेखनी
शब्द.........साहित्य में डूब निकले
हिंदी हो या फारसी
मानस मन सम्मोहित करूँ
ये चाहती है लेखनी
है प्रेम की सरिता ह्रदय में
बिखेरती है ज्योत्स्ना
अद्भुत प्रसंग पर दृष्टि पड़े
ये चाहती है लेखनी
कुछ भक्ति हो कुछ देश-हित
कुछ ज्ञानयुक्त दे माँ भारती
सामग्री जो काव्यबद्ध सजे
जनहित बरसाए ये लेखनी
यूँ तो अनेक प्रसंगों पर
रचनाएँ रचित हुई कई
रचनाये जो अमर हुई
सत्य वही है लेखनी
सृजन से वंचित क्यूँ 'आदी'रहे
श्रद्धा-पूरित है जब लेखनी
भावस्रोत प्रस्रित आज करो माँ
जो अमर करे 'आदर्शिनी'
आदर्शिनी श्रीवास्तव