Saturday, April 2, 2011

उन्हें ही देखा

जब भी देखा है कही और न देखा
फिर भी गम है की समन्दर नहीं देखा
हर एक आहट को नजरो से सुना है
बिन छुए ही हर धड़कन को है देखा
पल भर वो आँख से ओझल न हुआ
नज़रें उठाकर जबकि उस और न देखा
खुदा से भी ऊपर बिठाया है उसको
हर ख़ुशी से पहले उसे ढूंढ़ कर है देखा
सुबह से शाम तलक राह तकते रहे
जलती दुपहरी में तपते तलवों से है देखा
मुझको यकीं है उसकी हर ज़िद पर
आँखों में उसकी एक जूनून सा है देखा
आदर्शिनी श्रीवास्तव