Wednesday, October 12, 2011

.............आशिकों के बीच मुझको जलाया गया ..........

उन्मुक्तता को गले से लगाया गया,
सौम्यता अकेले, कहीं घुटती रही,
शलभ मचलता रहा इधर से उधर,
शम्मा जल जल, धुआँ-धुआँ होती रही,

सीमित दायरा ही सही मेरा मगर,
रौशनी देती हूँ मै, अंशुमान न सही,
चाँद को चैन मिल जाता है मगर,
रोज जलती हूँ मै कहीं न कहीं,
पीर गल गल कर मेरा बहता रहा,
तन पर बहते लावों को मै सहती रही,
शलभ मचलता रहा इधर से उधर,मै जल-जल धुआँ-धुआँ होती रही

जिधर चाह हवाओं ने झिझोडा मुझे,
खुद के हुस्न को,पिघल मैं छलती रही,
हिलती लौ में चेहरा तेरा दिखता रहा,
पीकर अंधकार रौशनी मै देती रही,
खूबसूरती को तराशे गए बदन मेरे,
नक्काशी कि चोट से सिसकती रही,
शलभ मचलता रहा इधर से उधर,मै जल-जल धुआँ-धुआँ होती रही

आशिकों के बीच मुझको जलाया गया,
कसक अपनी मै फिर भी छिपाती रही,
पिघले आँसुओ को भर, चषक बन गई
देख कर समझे शायद वो पीर मेरी,
रहूँ खामोश हुक्म ये बक्शा गया,
बहुत डरी जलने से मगर चीखी नहीं,
शलभ मचलता रहा इधर से उधर,मैं जल-जल धुआँ-धुआँ होती रही

गीत....................रंगों कि फूहार दे गया

रंगों की फुहार दे गया,मनके भीतर एक प्यास दे गया
आँख मेरी सपने थे उसके,सपनो का संसार दे गया,
मन के भीतर एक प्यास दे गया

पाती लिख सहलाया उसने,
मिली नहीं पर पाया उसने,
मीठी मीठी बांतों से, कितना
मुझको भरमाया उसने,
हठी बनी,किन्तु रह सकी नहीं,
ऐसा प्यार जताया उसने,

साँसें मेरी सरगम थे उसके,मधुर मिलन कि आस दे गया
मन के भीतर एक प्यास दे गया

रही नहीं मैं अपने वश में,
भावों से नहलाया उसने,
कह पाती कुछ उससे पहले,
अंशु बना चमकाया उसने,
समझ मद्य के अंतराल को,
कन्दर्प सदृश महकाया उसने,

पंखुड़ी मेरी ओस थी उसकी,सुन्दर वो बागबान दे गया,
मन के भीतर एक प्यास दे गया,

निदिया से रजनी जागी जैसे,
जाने का राज़ बताया उसने,
बिछुडन के भय से काप उठी जब,
मिसरी सी थपक लगया उसने,
बगिया का कोई फूल न छूटा,
फिर से सुमन खिलाया उसने,

उर मेरा अनुराग था उसका,दुल्हन का सा एक रूप दे गया
मन के भीतर एक प्यास दे गया,