उन्मुक्तता को गले से लगाया गया,
सौम्यता अकेले, कहीं घुटती रही,
शलभ मचलता रहा इधर से उधर,
शम्मा जल जल, धुआँ-धुआँ होती रही,
सीमित दायरा ही सही मेरा मगर,
रौशनी देती हूँ मै, अंशुमान न सही,
चाँद को चैन मिल जाता है मगर,
रोज जलती हूँ मै कहीं न कहीं,
पीर गल गल कर मेरा बहता रहा,
तन पर बहते लावों को मै सहती रही,
शलभ मचलता रहा इधर से उधर,मै जल-जल धुआँ-धुआँ होती रही
जिधर चाह हवाओं ने झिझोडा मुझे,
खुद के हुस्न को,पिघल मैं छलती रही,
हिलती लौ में चेहरा तेरा दिखता रहा,
पीकर अंधकार रौशनी मै देती रही,
खूबसूरती को तराशे गए बदन मेरे,
नक्काशी कि चोट से सिसकती रही,
शलभ मचलता रहा इधर से उधर,मै जल-जल धुआँ-धुआँ होती रही
आशिकों के बीच मुझको जलाया गया,
कसक अपनी मै फिर भी छिपाती रही,
पिघले आँसुओ को भर, चषक बन गई
देख कर समझे शायद वो पीर मेरी,
रहूँ खामोश हुक्म ये बक्शा गया,
बहुत डरी जलने से मगर चीखी नहीं,
शलभ मचलता रहा इधर से उधर,मैं जल-जल धुआँ-धुआँ होती रही
BAHUT PAYRI SI THORI DARD KI KASAK DETI RACHNA...!
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