इस अन्नत नभ के पीछे भी
कुछ तो हलचल जारी है,
चादर नीरवता की ताने
पर शोर भयंकर भारी है,
शांत दिख रहे सागर का
अंतस भी घायल है समझो,
स्थिर धरनी के अंतर में भी
एक बवंडर भारी है,
जीवन मृत्यु का खेल अजब
इसको पाना उसको खोना,
जीवित सा दिखने वाला कण
क्या निश्चित है जीवित होना?
जिसके दम से स्पंदन है
जब वह ही साँसों को चाहे,
तब होगा सब स्वीकार सहज
फिर क्या पाना और क्या खोना,
कुछ तो हलचल जारी है,
चादर नीरवता की ताने
पर शोर भयंकर भारी है,
शांत दिख रहे सागर का
अंतस भी घायल है समझो,
स्थिर धरनी के अंतर में भी
एक बवंडर भारी है,
जीवन मृत्यु का खेल अजब
इसको पाना उसको खोना,
जीवित सा दिखने वाला कण
क्या निश्चित है जीवित होना?
जिसके दम से स्पंदन है
जब वह ही साँसों को चाहे,
तब होगा सब स्वीकार सहज
फिर क्या पाना और क्या खोना,
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