उस गोरी के मन की बात जिसका सांवरा रोज़ शहर नौकरी करने सुबह-सुबह जाये और सांझ ढले आये ..तो वो बिचारी रोज़-रोज़ का बिछोह कैसे सह पाए .....प्रस्तुत है ....
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ये चाँद कुछ झुका-झुका
ये दीप से सजी सड़क
ये द्वार पूजती पवन
क्या चल पड़े इधर सजन?
तारे कुछ ही बच रहे
विहग के शोर मच रहे
किरण धरा को चूमती
अधर-कपोल रच रहे
खड़ी है भोर रंग लिए
सुबह बढ़ी तुरंग लिए
नयन-युगल विकल हुए
विछोह कर रहे सहन
ये पत्तियों की जालियाँ
हिला उठी हैं बालियाँ
क्यों हरसिंगार बेसमय
सजा रहा है डालियाँ ?
हवा की साँस तेज है
कुछ पीर निस्तेज है
ह्रदय धड़क-धड़क उड़ा
पकड़ जरा चला गगन
आ प्रीत को सँवार लूँ
निशा को बलिहार लूँ
साँझ से सुबह तलक
को कतरा-कतरा हार लूँ
हर एक क्षण सुभग रहे
ये चेतना सजग रहे
गुलों से ले के गंध-रंग
सजा लूँ रैन का वसन
ये चाँद कुछ झुका-झुका
ये दीप से सजी सड़क
ये द्वार पूजती पवन
क्या चल पड़े इधर सजन?
........आदर्शिनी......मेरठ, गोण्डा....
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ये चाँद कुछ झुका-झुका
ये दीप से सजी सड़क
ये द्वार पूजती पवन
क्या चल पड़े इधर सजन?
तारे कुछ ही बच रहे
विहग के शोर मच रहे
किरण धरा को चूमती
अधर-कपोल रच रहे
खड़ी है भोर रंग लिए
सुबह बढ़ी तुरंग लिए
नयन-युगल विकल हुए
विछोह कर रहे सहन
ये पत्तियों की जालियाँ
हिला उठी हैं बालियाँ
क्यों हरसिंगार बेसमय
सजा रहा है डालियाँ ?
हवा की साँस तेज है
कुछ पीर निस्तेज है
ह्रदय धड़क-धड़क उड़ा
पकड़ जरा चला गगन
आ प्रीत को सँवार लूँ
निशा को बलिहार लूँ
साँझ से सुबह तलक
को कतरा-कतरा हार लूँ
हर एक क्षण सुभग रहे
ये चेतना सजग रहे
गुलों से ले के गंध-रंग
सजा लूँ रैन का वसन
ये चाँद कुछ झुका-झुका
ये दीप से सजी सड़क
ये द्वार पूजती पवन
क्या चल पड़े इधर सजन?
........आदर्शिनी......मेरठ, गोण्डा....
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